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203 दिनों के धरने, 5 बार खदान बंदी के बाद भूविस्थापितों को रोजगार देने की प्रक्रिया हुई शुरू, नियमों को शिथिल कर दो प्रकरणों में आदेश, लेकिन जारी रहेगा आंदोलन

 

 

कुसमुंडा (कोरबा)। जमीन के बदले रोजगार की मांग कर रहे भूविस्थापित किसानों के आंदोलन की पहली जीत हुई है। एसईसीएल के बिलासपुर मुख्यालय ने वर्तमान नियमों को शिथिल करते हुए दो लोगों को रोजगार देने के लिए आदेश जारी किए हैं। इस जीत से उत्साहित आंदोलनकारियों ने अपने संघर्ष को और तेज करने का फैसला किया है और भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सभी विस्थापित परिवारों को रोजगार मिलने तक आंदोलन जारी रखने का निश्चय किया है।

 

उल्लेखनीय है कि कुसमुंडा कोयला खदान विस्तार के लिए 1978 से 2004 तक जरहा जेल, बरपाली, दुरपा, खम्हरिया, मनगांव, बरमपुर, दुल्लापुर, जटराज, सोनपुरी, बरकुटा, गेवरा, भैसमा आदि गांवों में बड़े पैमाने पर सैकड़ों किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था। इस समय एसईसीएल की नीति भूमि के बदले रोजगार देने की थी। लेकिन प्रभावित परिवारों को उसने रोजगार नहीं दिया। बाद में यह नीति बदलकर न्यूनतम दो एकड़ भूमि के अधिग्रहण पर एक रोजगार देने की बना दी गई। इससे अधिग्रहण से प्रभावित अधिकांश किसान रोजगार मिलने के हक़ से वंचित हो गए।

 

पिछले 203 दिनों से माकपा और छत्तीसगढ़ किसान सभा के सहयोग से रोजगार एकता संघ के बैनर पर भूविस्थापितों द्वारा ‘जमीन के बदले रोजगार’ आंदोलन चलाया जा रहा है। आंदोलनकारी पूर्व नीति के अनुसार सभी प्रभावितों को रोजगार देने की माग कर रहे हैं और इस मांग पर जोर देने के लिए वे पांच बार खदान बंदी भी कर चुके हैं। आंदोलनकारियों को इस दौरान गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया है।

 

इस आंदोलन को आज पहली जीत मिली है। बरपाली के किरण कुमार और दुरपा गांव के मंगल को, जिनकी क्रमशः 27 डिसमिल और 67 डिसमिल भूमि अधिग्रहित हुई थी, रोजगार देने के लिए एसईसीएल के बिलासपुर मुख्यालय को आदेश जारी करने के लिए बाध्य होना पड़ा है। यह खबर मिलते ही धरनास्थल पर इस पहली जीत की खुशी में मिठाईयां बांटी गई।

 

इस अवसर पर आयोजित सभा को छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर, सचिव प्रशांत झा और दीपक साहू ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि किसान सभा का शुरू से मानना है कि जिनकी जमीन का एसईसीएल ने अधिग्रहण किया है, प्रत्येक खातेदार को स्थाई रोजगार मिलना चाहिए, क्योंकि किसानों के पास जीविका का एकमात्र साधन जमीन ही होता है। यह भू विस्थापितों के संघर्षों की जीत है कि एसईसीएल को इस जायज मांग को मानना पड़ा है। उन्होंने कहा कि दमन के सहारे शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचला नहीं जा सकता और अब प्रबंधन के खिलाफ अर्जन के बाद जन्म और रैखिक संबंध के मामले में विस्थापितों के पक्ष में फैसला देने के लिए संघर्ष तेज किया जाएगा।

 

दो लोगों को पुराने लंबित प्रकरणों में रोजगार के आदेश के बाद भू विस्थापित किसानों द्वारा चल रहे आंदोलन को नई ऊर्जा मिली है और अन्य सभी भू विस्थापितों को उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है।

 

रोजगार एकता संघ के अध्यक्ष राधेश्याम कश्यप, सचिव दामोदर श्याम और रेशम यादव ने कहा कि इस जीत से मिले हौसले के बाद सभी भू विस्थापितों को रोजगार मिलने तक संघर्ष को और तेज किया जाएगा। जय कौशिक, बलराम कश्यप, रघु, मोहन कौशिक, पुनीत, रघुनंदन, हेमलाल, होरी, राजेश यादव, अशोक, दीपक के साथ बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने संघर्ष को और तेज करने का संकल्प लिया।

 

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