खंडवा। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की धार्मिक तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में श्रावण मास के दूसरे सोमवार भी सुबह से ही बड़ी संख्या में भोले बाबा के भक्त बाबा ओंकार के दर्शन करने पहुंचे हैं। यहां सुबह 4 बजे से बाबा ओंकार के पट खोल दिए गए, और दर्शन शुरू कर दिए गए। इसके बाद हर कोई ओम आकर के पर्वत पर बसे बाबा ओंकार की एक झलक पाकर उनका आशीर्वाद लेने की कोशिश करता हुआ दिखाई दिया।
बड़ी संख्या में देश के दूर दराज के हिस्सों से यहां पहुंचे भक्त बाबा ओंकारेश्वर के जयकारे लगाते हुए नजर आए। सावन माह के दूसरे सोमवार को यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु मां नर्मदा में स्नान करने के बाद भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग में पहुंचकर दर्शन लाभ ले रहे हैं। इसके बाद शाम करीब चार बजे भगवान ओमकारेश्वर और भगवान ममलेश्वर की सवारियां भी निकलेंगी, जो कि रात करीब 10 बजे तक नगर भ्रमण करेंगी।
झूला पूल पर नजर आया मधुमक्खियों का झुंड
ओंकारेश्वर में सावन के दूसरे सोमवार पर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे हैं। दोपहर करीब 12 बजे ज्योतिर्लिंग भगवान ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचने के मार्ग पर स्थित झूला पुल पर बड़ी संख्या में मधुमक्खियां नजर आईं। इतनी बड़ी संख्या में मधुमक्खियों का झुंड झूला पुल पर मंडराता देख यहां से गुजरने वाले श्रद्धालुओं में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। वे मधुमक्खियों से बचने के लिए इधर-उधर भागते नजर आए। हालांकि, गनीमत रही कि इस दौरान कोई हादसा नहीं हुआ। मधुमक्खियों के हमले में किसी के घायल होने की भी सूचना नहीं है।
यह है भगवान ओंकारेश्वर के प्रकट होने की महिमा
भगवान ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित डंकेश्वर दीक्षित जी महाराज ने भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का गुणगान करते हुए भक्तों को बताया कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग भगवान ओंकारेश्वर का है। वहीं बाबा ओंकार के यहां प्रकट होने को लेकर उन्होंने बताया कि भगवान राम से 14 पीढ़ी पूर्व मांधाता नाम से राजा हुए हैं, जिनकी तपस्या से भगवान ओंकारेश्वर प्रकट हुए हैं। यहां एक ही शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनो प्रकट हुए हैं। यहां प्राचीन समय से जो अखंड दीप जल रहा है, उसमें भी एक ही दीपक में तीन बत्तियां जल रही हैं, ब्रह्मा विष्णु और महेश की।
यहां 7 किलोमीटर का है परिक्रमा मार्ग
ओंकार पर्वत के बारे में बताते हुए पंडित डंकेश्वर दीक्षित जी महाराज ने बताया कि ओम्कारेश्वर नगर की इस पहाड़ी के ऊपर 7 किलोमीटर का परिक्रमा मार्ग है। परिक्रमा का यह पूरा मार्ग भी ओम आकार की ही आकृति में है। यही नहीं, जिस पर्वत पर स्वयं भगवान ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर विराजमान हैं, वह पर्वत भी स्वयं शिवलिंग के आकार में है। इतना ही नहीं, इस पर्वत के चारों तरफ नर्मदा मैया बह रही हैं।
यहां की शयन आरती है प्रसिद्ध
पंडित दीक्षित जी ने सभी ज्योतिर्लिंगों में भगवान ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर का मंदिर क्यों अलग है, इसको लेकर बताया कि पूरे 12 ज्योतिर्लिंगों में शयन आरती होती है। लेकिन बाबा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में प्रभु का रात्रि विश्राम रहता है। यहां पर बाबा ओंकार के शयन के लिए झूला, पालना, चौसर, पासे बिछाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पुराणों में कहा गया है कि भोले बाबा का रात्रि विश्राम ओंकारेश्वर में ही है, और वे 3 बजे रात्रि में उठकर उज्जैन के महाकालेश्वर जाते हैं, और वहां स्नान करते हैं। इसलिए वहां की भस्म आरती प्रसिद्ध है, और यहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में शयन आरती प्रसिद्ध है।
मां नर्मदा मैया की भी बताई महिमा
पंडित डंकेश्वर जी महाराज ने बताया कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में केवल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ही है, जिसके तट को छूकर कोई नदी बह रही है। इसके दर्शन के पश्चात कोई महानदी का दर्शन होता है। वह महानदी नर्मदा मैया है। मान्यता है कि भगवान शंकर की देह से निकले पसीने की बूंद से मां नर्मदा मैया उत्पन्न हुई है। अन्य नदियां उत्तर से दक्षिण और दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहती हैं। लेकिन मां नर्मदा उदय से अस्त की ओर बहती है अर्थात पूरब से पश्चिम की ओर बहती है। सब नदियों में नर्मदा नदी ही ऐसी नदी है, जिसके जितने भी कंकर हैं सब शंकर हैं। इसीलिए नर्मदा पुराण में भी कहा गया है कि, नर्मदा जल के स्पर्श होने से जो शिवलिंग बनता है, उसको सीधे ले जाकर पूजा कीजिए। नर्मदा जल के स्पर्श होने से वह स्वयं अधिष्ठित हो जाते हैं। अभी 22 जनवरी को रामलला अयोध्या में भी नर्मदा जी का शिवलिंग स्थापित किया गया है।