December 17, 2025 2:08 pm

“छप्पन लाख की कुर्बानी! युवक ने रेल पटरी पर मौत को लगाया गले, ठेकेदार पर आरोप – ‘पैसा नहीं मिला तो टूट गई ज़िंदगी की डोर’”

महासमुंद जिले के शांत माने जाने वाले इलाके में एक ऐसा दर्दनाक मामला सामने आया है, जिसने हर संवेदनशील दिल को झकझोर कर रख दिया है। छत्तीसगढ़ के ग्राम बेंमचा निवासी 23 वर्षीय युवक ने कथित रूप से आर्थिक शोषण और मानसिक उत्पीड़न से तंग आकर रेल की पटरियों पर आत्महत्या का प्रयास किया। परिजनों का आरोप है कि छप्पन लाख रुपए की भारी-भरकम रकम का भुगतान न होने से टूटकर युवक ने यह चरम कदम उठाया। फिलहाल युवक जीवन और मौत के बीच जूझ रहा है, जबकि परिवार न्याय की गुहार लगाते हुए पुलिस के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।

घटना 16 और 17 दिसम्बर की मध्यरात्रि की है, जब चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। कहा जाता है कि रात इंसान के सारे राज़ जानती है, और इसी रात के सन्नाटे में ग्राम बेंमचा के भोला चन्द्राकर का पुत्र लोकेश चन्द्राकर, बेसोंडा के पास रेलवे ट्रैक की ओर बढ़ता नज़र आया। परिवार के अनुसार, वह भीतर से पूरी तरह टूट चुका था, लेकिन किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि वह इस कदर हताश हो चुका है कि अपनी ज़िंदगी तक को दांव पर लगा देगा।

बताया जा रहा है कि लोकेश चन्द्राकर की उम्र मात्र 23 वर्ष है। यह वह उम्र होती है, जब सपने रास्ता चुनते हैं, उम्मीदें आसमान नापती हैं और ज़िंदगी रफ्तार पकड़ती है। मगर लोकेश के हिस्से में रफ्तार की जगह निराशा और दर्द लिखी गई। परिजनों के अनुसार, लोकेश अविनाश चन्द्राकर के साथ ठेकेदारी के काम से जुड़ा हुआ था। अविनाश चन्द्राकर, जो स्वर्गीय काशी लाल चन्द्राकर के नाम से जारी लाइसेंस पर ठेकेदारी का काम करता है, उस पर आरोप है कि वह लंबे समय से लोकेश को उसके मेहनत की भारी-भरकम रकम नहीं दे रहा था।

आवेदक भोला चन्द्राकर द्वारा थाना महासमुंद में दी गई लिखित शिकायत के मुताबिक, लोकेश चन्द्राकर का अविनाश चन्द्राकर से कुल 56,00,000 रुपए यानी छप्पन लाख की राशि लेनी थी। यह कोई मामूली रकम नहीं, बल्कि एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार के लिए जीवन बदल देने वाली राशि है। परिजनों का आरोप है कि अविनाश लगातार भुगतान टालता रहा, बहाने बनाता रहा और हर बार “आज नहीं, कल”, “कागज़ तैयार हो रहे हैं”, “पैसा फँसा हुआ है” जैसे वादों से लोकेश को बहलाता रहा।धीरे-धीरे ये अधूरे वादे लोकेश की उम्मीदों पर भारी पड़ने लगे। परिवार का कहना है कि लोकेश ने कई बार घर में बैठकों में, पारिवारिक चर्चाओं के दौरान यह बात कही थी कि अविनाश पैसा नहीं दे रहा है, और वह इसी वजह से बहुत परेशान है। शुरुआत में परिवार वालों ने उसे धीरज बंधाया, उसे समझाया कि समय लगेगा, लेकिन मेहनत की कमाई कोई खा नहीं सकता। मगर जब दिन हफ्तों में, और हफ़्ते महीनों में बदल गए, तो लोकेश के सब्र का बांध टूटने लगा।

लोकेश की डायरी में लिखी कुछ पंक्तियाँ और उसके नज़दीकी लोगों के बयानों ने इस त्रासदी की पृष्ठभूमि को और भी भयावह बना दिया है। परिजनों के अनुसार, लोकेश की निजी डायरी में ऐसे शब्द दर्ज हैं, जिनमें दर्द, विश्वासघात और आर्थिक शोषण की टीस साफ-साफ झलकती है। कथित रूप से डायरी के पन्नों से यह संकेत मिलता है कि वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा था, उसे लग रहा था कि उसकी मेहनत, उसका संघर्ष और उसका भविष्य किसी और की लालच भरी मुट्ठी में कैद हो गया है।

इन्हीं हालातों के बीच 16–17 दिसम्बर की रात आई, जब लोकेश चन्द्राकर बेसोंडा के पास रेलवे ट्रैक तक जा पहुंचा। रात के अंधेरे में, सरपट दौड़ती लोहे की पटरियों पर उसने मौत को गले लगाने की कोशिश की। ट्रेन की तेज रफ्तार और टकराव के बाद लोकेश बुरी तरह घायल हो गया। बताया जा रहा है कि उसके शरीर पर गंभीर चोटें आई हैं और उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है।

स्थानीय लोगों की सूचना पर पुलिस और परिजन मौके पर पहुंचे और आनन-फानन में लोकेश को अस्पताल पहुँचाया गया। वर्तमान में वह RLC हॉस्पिटल में भर्ती है, जहां डॉक्टरों की टीम उसकी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। हर बीतते पल के साथ परिजनों की धड़कनें तेज हो रही हैं, आँखों में चिंता, बेबसी और गुस्से का मिला-जुला सैलाब उमड़ रहा है।

लोकेश के पिता, भोला चन्द्राकर ने अपने लिखित आवेदन में थाना प्रभारी, पुलिस थाना महासमुंद से आग्रह किया है कि इस पूरे मामले की गंभीरता से जाँच की जाए। उनका आरोप है कि यदि अविनाश चन्द्राकर समय पर लोकेश को उसका मेहनत का पैसा दे देता, तो आज उनका बेटा मौत से जूझने पर मजबूर न होता। भोला चन्द्राकर का कहना है कि आर्थिक दबाव, मानसिक तनाव और बार-बार की टालमटोल ने उनके बेटे की मानसिक स्थिति को इस कदर तोड़ दिया कि उसने आत्महत्या जैसे कठोर कदम के बारे में सोचना शुरू कर दिया।

आवेदन में यह भी उल्लेखित है कि न सिर्फ डायरी, बल्कि आस-पड़ोस के लोगों और जानकारों के बयानों से भी यह बात सामने आई है कि लोकेश लंबे समय से आर्थिक रूप से बेहद परेशान था। उसके मन में यह डर घर कर गया था कि अगर पैसा नहीं मिला, तो न तो वह अपने पुराने कर्ज चुका पाएगा, न ही भविष्य की किसी योजना को आगे बढ़ा पाएगा। यही डर धीरे-धीरे निराशा में बदलता गया और फिर वही निराशा उसे रेलवे ट्रैक तक खींच ले गई।

भोला चन्द्राकर ने अपने आवेदन के माध्यम से पुलिस प्रशासन से गुहार लगाई है कि अविनाश चन्द्राकर के खिलाफ उचित वैधानिक कार्यवाही की जाए, ताकि न केवल उनके बेटे को न्याय मिल सके, बल्कि भविष्य में किसी और युवक को इस तरह टूटी हुई उम्मीदों और अधूरे वादों के बोझ तले खुद की जान लेने पर मजबूर न होना पड़े।

अब यह देखना होगा कि पुलिस इस पूरे प्रकरण में क्या रुख अपनाती है। क्या पुलिस आर्थिक शोषण और कथित ठगी के इन आरोपों की गहराई से जांच करेगी? क्या छप्पन लाख की यह रकम, जो एक युवक के सपनों, संघर्ष और जीवन की पूँजी थी, उसके लिए न्याय की राह खोल पाएगी?

फिलहाल, RLC हॉस्पिटल के बेड पर ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते लोकेश की हर सांस, उसके परिवार की दहशत भरी आँखें और उसके पिता की थाने में दी गई अर्जी – सब मिलकर एक ही सवाल पूछ रहे हैं:
क्या एक युवा ज़िंदगी की कीमत सिर्फ छप्पन लाख रुपए थी?

BBC LIVE
Author: BBC LIVE

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