बिलासपुर। आजकल के समय में लोग शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रहना पसंद करते है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। जिसमें हाई कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति में एक “कलंक” है। यह वेस्टर्न कंट्री ने लाई गई सोच है, जो कि भारतीय रीति-रिवाजों की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह फैसला दंतेवाड़ा से जुड़े एक मामले में दिया। दरअसल, दंतेवाड़ा निवासी शादीशुदा अब्दुल हमीद सिद्दिकी करीब तीन साल से एक हिंदू महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में था। जिसके बाद महिला गर्भवती हो गई। और उसने बच्चे को जन्म दिया। जिसके बाद महिला अपने बच्चे को लेकर अचानक अपने माता-पिता के पास चली गई।
इसके बाद अब्दुल हमीद ने 2023 में ही हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई, जिस पर सुनवाई के दौरान अपने माता-पिता और बच्चे के साथ पेश हुई। महिला ने कहा कि वह अपनी इच्छा से अपने माता-पिता के साथ रह रही है। बच्चे से मिलने नहीं देने पर अब्दुल हमीद ने फैमिली कोर्ट में आवेदन प्रस्तुत किया। उसमें कहा कि वह बच्चे की देखभाल करने में सक्षम है, लिहाजा बच्चा उसे सौंपा जाए। महिला की तरफ से तर्क दिया गया कि लिव इन रिलेशनशिप से हुए बच्चे पर उसका हक नहीं बनता। इन सब के बाद हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिका खारिज कर दी है।
भारतीय संस्कृति के लिए कलंक
जस्टिस गौतम भादुड़ी और संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा… ‘भारतीय संस्कृति में कलंक बनी हुई है, क्योंकि यह पारंपरिक भारतीय मान्यताओं के खिलाफ है।’ हाईकोर्ट ने कहा कि यह पश्चिम सभ्यता है जो भारतीय सिद्धांतों की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत है।’ उन्होंने कहा कि पर्सनल लॉ के नियमों को किसी भी अदालत में तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि उन्हें प्रथागत प्रथाओं के रूप में प्रस्तुत और मान्य नहीं किया जाता।