नई दिल्ली। साधु-संतों के बाद अब RSS की विचारधारा से प्रभावित अंग्रेजी मुखपत्र पत्रिका आर्गनाइजर को भी मंदिर मस्जिद विवाद को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत की दलील रास नहीं आई है। एक समाचार पत्र के अखबार में कहा गया है कि, यह सोमनाथ से संभल और उससे आगे तक इतिहास की सच्चाई जानने की लड़ाई है। भागवत ने हाल ही में मंदिर मस्जिद विवादों के फिर से उठाने पर चिंता व्यक्त करते हुए लोगों को ऐसे मुद्दे नहीं उठाने की सलाह दी थी।
उन्होंने कहा था कि, मंदिर-मस्जिद विवाद को उठाकर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदुओं का नेता नहीं बन सकता। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। साधु-संतों ने भागवत के इस बयान का का कड़ा प्रतिवाद किया था। जगदुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा था कि, मैं उनके बयान से पूरी तरह असहमत हूं। वह हमारे अनुशासक नहीं हैं, बल्कि हम हैं। अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा था कि, मंदिर मस्जिद का मुद्दा धार्मिक है। मोहन भागवत को यह मुद्दा छोड़ देना चाहिए।
आर्गनाइजर( एक अंग्रेजी समाचार पत्र) के संपादकीय में कहा गया है कि, बीआर आंबेडकर का अपमान किसने किया, इसको लेकर मचे कोलाहल के बीच ऐतिहासिक रिकार्ड स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि, कांग्रेस ने संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष के साथ कैसा व्यवहार किया था। ऐसे में उत्तर प्रदेश के संभल में हाल के घटनाक्रम ने लोगों को उद्वेलित कर दिया है। इस ऐतिहासिक शहर में अब जामा मस्जिद बना दिए गए, श्री हरिहर मंदिर का सर्वेक्षण करने संबंधी याचिका से शुरू हुआ विवाद व्यक्तियों व समुदायों को दिए गए संवैधानिक अधिकारों के बारे में एक नई बहस को जन्म दे रहा है।
ऐतिहासिक सत्य जानना धार्मिक वर्चस्व की लड़ाई नहीं: प्रफुल्ल केतकर
आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर द्वारा लिखे गए संपादकीय में कहा गया है कि, छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी चश्मे से बहस को हिंदू मुस्लिम प्रश्न तक सीमित करने के बजाय हमे सच्चे इतिहास पर आधारित सभ्यतागत न्याय पाने के लिए एक विवेकपूर्ण और समावेशी बहस की आवश्यकता है, जिसमें समाज के सभी वर्ग शामिल हो। सोमनाथ से लेकर संभल और उससे परे ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व की लड़ाई नहीं है। यह हिंदू लोकाचार के खिलाफ है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय पाने के बारे में है। संपादकीय में कहा गया है कि, इस्लामिक आधार पर मातृभूमि के दर्दनाक विभाजन के बाद इतिहास के बारे में सच्चाई बताकर सभ्यतागत न्याय के लिए प्रयास करने और सामंजस्यपूर्ण भविष्य के लिए वर्तमान को पुनः स्थापित करने के बजाय कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने आक्रमणकारियों के पापों को छिपाने का विकल्प चुना।