अब्दुल सलाम क़ादरी(बीबीसी लाईव)
कोरबा। बिलासपुर। रायपुर। छत्तीसगढ़ के कोरबा वन मंडल के बालको रेंज में वृक्षारोपण से संबंधित एक शिकायत दर्ज कराई गई थी। शिकायत में बताया गया है कि वृक्षारोपण योजना अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई थी, वृक्षारोपण में मात्र 20 से 30 प्रतिशत ही पौधे जीवित बचे थे? या वृक्षारोपण ही कम मात्रा में किया गया था? साथ फर्जी मजदूरी भरकर लाखो की हेरा फेरी की गई थी जिसके चलते संबंधित शिकायत दर्ज की गई। लेकिन, जांच में ऐसा आरोप लग रहा है कि जांच अधिकारी और संबंधित वरिष्ठ विभागीय के अधिकारियों ने लाखों रुपये लेकर इस मामले की जांच को दबा दिया।
यदि ये आरोप सत्य साबित होते हैं, तो यह वन विभाग में भ्रष्टाचार की गंभीर समस्या की ओर इशारा करता है। इस तरह की अनियमितताएँ पर्यावरणीय संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित करती हैं, क्योंकि वृक्षारोपण जैसी योजनाएँ न केवल हरियाली बढ़ाने में बल्कि स्थानीय पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
इस मामले में आगे की जांच और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उच्च अधिकारियों एवं संबंधित जांच एजेंसियों द्वारा गहन जांच की आवश्यकता है। अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि यदि ऐसी अनियमितताएँ पाई जाती हैं, तो दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में इस तरह के घोटाले रोके जा सकें।

उपरोक्त मामले में शिकायत सीधा दिल्ली नेशनल कैम्पा को भेजी गई थी। साथ ही एक कॉपी सीसीएफ बिलासपुर को दी गई थी। एक प्रति छत्तीसगढ़ के सीईओ कैम्पा को भी जांच के लिए भेजी गई थी। लेकिन आज दिनांक तक उपरोक्त मामले में जांच करना तो दूर मामले को ही छत्तीसगढ़ के उच्चाधिकारियों द्वारा दबाने का कार्य किया जा रहा है। बिलासपुर सीसीएफ श्री प्रभात मिश्रा द्वारा जांच नही किया गया और आरटीआई में जवाब मांगने पर कहा गया कि इस प्रकार का कोई दस्तावेज कार्यालय में उपलब्ध नही है?
इस स्थिति से पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न उठते हैं। यह न केवल वन विभाग की विश्वसनीयता पर असर डालता है, बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण और वृक्षारोपण जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। आगे की कार्रवाई के लिए निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है…
उच्च अधिकारियों से स्पष्टीकरण:
इस मामले में आगे की जांच न होने के कारण जिम्मेदार अधिकारियों से स्पष्टीकरण और स्थिति की स्पष्ट रिपोर्ट मांगी जाए।
कानूनी सलाह एवं याचिका: जानकारों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा है कि यदि आरटीआई में भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराने का दावा किया जा रहा है, तो कानूनी सलाह लेकर सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जा सकती है।
जनसचेतना एवं मीडिया का सहयोग: इस मामले की जानकारी मीडिया और जनसंचार माध्यमों तक पहुँचाई जाए ताकि जनता के बीच जागरूकता बढ़े और दबाव के चलते संबंधित विभाग उचित कार्रवाई करें।
स्वतंत्र जांच समिति: वही दुबारा एक पत्र पीएमओ को भेजी गई है जहां एक स्वतंत्र जांच समिति की स्थापना का आग्रह किया गया है, जो इस मामले की निष्पक्ष जाँच कर सके।
इस प्रकार के मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि न केवल वन संरक्षण के प्रयास मजबूत हों बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार को भी रोका जा सके।