नई दिल्ली। राउज एवेन्यू कोर्ट की विशेष अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने यह टिप्पणी नौकरी के बदले जमीन से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में आरोपित व पूर्व रेल मंत्री लालू यादव के करीबी व्यवसायी अमित कत्याल का इलाज कर रहे निजी डॉक्टरों के बयान दर्ज करने के लिए कड़े धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए)-2002 का इस्तेमाल करने के लिए की है
ईडी की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा कि ईडी कानून से बंधा है और आम नागरिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कर सकता है। विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) विशाल गोगने ने कहा कि मजबूत नेता, कानून और एजेंसियां आम तौर पर उन्हीं नागरिकों को परेशान करती हैं, जिनकी रक्षा करने का वे कसम खाती हैं। हालांकि, अदालत ने कत्याल की अंतरिम जमानत को बढ़ाने से इनकार कर दिया। कल्याल को पांच फरवरी को चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत मिली थी।
लोकतंत्र में नागरिकों के पास अधिकार
अदालत ने नोट किया कि कत्याल ठीक होने की राह पर हैं और जेल परिसर के भीतर निर्धारित जीवन शैली का पालन कर सकते हैं। विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) विशाल गोगने ने कहा कि भारत जैसे लोकतंत्र में नागरिकों के पास अधिकार तो राज्य के पास कुछ कर्तव्य हैं और इस मौलिक संबंध को एक सत्तावादी तर्क को लागू करने के लिए बदला नहीं जा सकता है। अदालत ने कहा कानून और अदालतों के प्रति जवाबदेह एजेंसी के रूप में ईडी अपने अधिकार अपने पास नहीं रख सकती। अदालत ने उक्त टिप्पणी कत्याल की तरफ से पेश किए गए तर्क को स्वीकार करते हुए दिया। कत्याल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने पीएमएलए की धारा-50 के तहत मेदांता व अपोलाे अस्पताल के उन निजी डाक्टरों के बयान दर्ज करने पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी, जिनसे उनका मुवक्किल परामर्श ले रहा था।
आरोपित का इलाज मेदांता अस्पताल में
उन्होंने तर्क दिया था कि यह न केवल धारा-50 पीएमएलए के तहत अनुमेय कार्रवाई का उल्लंघन है, बल्कि चिकित्सा उपचार की गोपनीयता व आरोपित के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ईडी द्वारा चिकित्सकों पर कड़े कानून के उपयोग के कारण अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने आरोपित का इलाज करने में आनाकानी की और आखिरकार आरोपित का इलाज मेदांता अस्पताल में किया गया। पाहवा के तर्क को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि व्याख्या के किसी भी दायरे में धारा-50 के उस विस्तारित दायरे पर विचार नहीं किया जा सकता है, जिसमें डाक्टरों सहित नागरिकों के बयान दर्ज करना शामिल है। अदालत ने कहा कि आरोपित के साथ डाक्टरों की सांठगांठ के रत्ती भर भी आरोप के बगैर ईडी के लिए एक सामान्य नागरिक को धारा -50 की कड़ी प्रक्रिया के अधीन करने का कोई औचित्य नहीं है।
अदालत ने कहा कि यह किसी भी निजी नागरिक या डॉक्टर के लिए चौंकाने वाली बात है, जोकि अधिकतर विभिन्न मुकदमों में अदालतों की सहायता के लिए हैं। अदालत ने कहा कि सख्त कानूनों के इच्छित उद्देश्य की इस तरह की अनदेखी से जांच एजेंसियों द्वारा बचा जाना चाहिए और अदालतों द्वारा सचेत रूप से निगरानी की जानी चाहिए। अदालत को यह दिलचस्प लगा है कि ईडी ने धारा-50 के तहत सरकारी अस्पतालों के उन डॉक्टरों से पूछताछ करने से बचने की कोशिश की, जिनसे कत्याल के बीमारी पर राय ली गई थी। व्यवसायी अमित कात्याल अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। कात्याल पर रेलवे नौकरियों के लिए जमीन घोटाले के सिलसिले में पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्यों के साथ लेनदेन करने का आरोप है। नौ अप्रैल को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनकी सर्जरी हुई थी।