उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट के प्रावधानों को समझने में भूल की है. हाई कोर्ट का ये मानना कि ये एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, ग़लत है.” इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मदरसा बोर्ड की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट का अधिकार नहीं बनता कि इस एक्ट को रद्द करे… 17 लाख छात्र इस फैसले से प्रभावित हुए हैं. वहीं, करीब 25000 मदरसे प्रभावित हुए हैं. ये लगभग 125 साल पुराना है, 1908 से मदरसा रजिस्टर हो रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट के प्रावधानों को समझने में भूल की है. हाई कोर्ट का ये मानना कि ये एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, ग़लत है.” सुपीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओ पर केंद्र, यूपी सरकार, यूपी मदरसा एजुकेशन बोर्ड को नोटिस जारी किया. कोर्ट ने यूपी और केंद्र सरकार को 31 मई तक जवाब दखिल करने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है. जुलाई के दूसरे हफ्ते में इस मामले पर सुनवाई होगी और तब तक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक रहेगी. यूपी के 16000 मदरसों के 17 लाख छात्रों के लिए यह बड़ी राहत की बात है. फिलहाल 2004 के कानून के तहत मदरसों में पढ़ाई चलती रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ” इलाहाबाद हाई कोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है. ये कहना सही नहीं कि ये धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है. खुद यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में ऐक्ट का बचाव किया था. हाई कोर्ट ने 2004 के एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था.”
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूण, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. इस दौरान सिंघवी ने कहा, “आज लोकप्रिय गुरुकुल हैं, क्योंकि वे अच्छा काम कर रहे हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश में कुछ बहुत अच्छे गुरुकुल हैं. यहां तक कि मेरे पिता के पास भी उनमें से एक की डिग्री है… तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? क्या यह 100 साल पुराने कानून को खत्म करने का आधार हो सकता है?”
सिंघवी ने कहा, “यदि आप अधिनियम को निरस्त करते हैं, तो आप मदरसों को अनियमित बना देते हैं और 1987 के नियम को नहीं छुआ जाता. हाईकोर्ट का कहना है कि यदि आप धार्मिक विषय पढ़ाते हैं, तो यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धार्मिक शिक्षा का अर्थ धार्मिक निर्देश नहीं है.”