नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने ‘एक देश-एक चुनाव’ की ओर एक और कदम बढ़ा दिया है। केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को संविधान का 129वां संशोधन विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) बिल लोकसभा में पेश किया। विपक्षी दलों ने इसे ‘तानाशाही’ की ओर कदम बताते हुए बिल संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की मांग की। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा, ‘जब बिल मंत्रिमंडल में चर्चा के लिए आया था, तब पीएम नरेंद्र मोदी ने इसे जेपीसी को भेजने की मंशा जताई थी।’ बिल जेपीसी को भेजे जाएंगे। संसद का मौजूदा सत्र 20 दिसंबर तक है। ऐसे में इस सत्र में बिल पास नहीं होंगे। जेपीसी से मंजूरी के बाद अगर बिल संसद में बिना परिवर्तन पास हो गए तो इस पर अमल 2034 से संभव हो पाएगा।
इससे पहले 90 मिनट की बहस के बाद 129वां संशोधन बिल पेश करने के लिए मतदान हुआ। तकनीकी कारणों से बिल दो बार पेश करना पड़ा। विधेयक पेश होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने कार्यवाही स्थगित कर दी। बता दें, सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक चुनाव की संभावना तलाशने के लिए समिति बनीं थी। इसकी रिपोर्ट पर बिल के मसौदे को गुरुवार को कैबिनेट ने मंजूरी दी।
संसद में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन
आपको बता दें कि, संसद में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से वोटिंग हुई। कुल 369 सदस्यों ने वोट दिया। बिल के पक्ष में 220 व खिलाफ 149 वोट पड़े। विपक्ष ने आपत्ति जताई तो स्पीकर ने पर्ची से संशोधन की व्यवस्था दी। इस पर 92 सदस्यों ने पर्ची से वोट दिया। अंत में बिल के पक्ष में 269, विपक्ष में 198 मत पड़े।
अप्वाइंटेड डेट 2029 के चुनाव के बाद फिर पांच साल बाद एक साथ चुनाव
जेपीसी का गठन कैसे होगा? लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे। संख्या संसद में पार्टियों की ताकत के हिसाब से तय होगी। सबसे बड़ी पार्टी होने से सबसे ज्यादा सदस्य और अध्यक्ष भाजपा से हो सकता है।
जेपीसी को क्या करना होगा?
बता दें कि, आठ पन्नों के बिल में जेपीसी के लिए काफी होमवर्क छोड़ा गया है। संविधान के तीन अनुच्छेदों में परिवर्तन करने और एक नया प्रावधान जोड़ने की पेशकश है। अनुच्छेद 82 में नया प्रावधान जोड़कर राष्ट्रपति द्वारा अप्वाइंटेड तारीख तय करने की बात है। अनुच्छेद 82 जनगणना के बाद परिसीमन के बारे में है।
जेपीसी रिपोर्ट कब देगी?
विधेयकों को अंतिम रूप देने में पूरा 2025 लग सकता है। ऐसा हुआ तो बिल सदन में 2026 में जाएंगे। विशेष बहुमत जुटाकर इसे पास करवाया गया तो निर्वाचन आयोग के पास 2029 की तैयारी के लिए 2 साल बचेंगे, जो पर्याप्त नहीं।
क्या कोई डेडलाइन तय है?
बिल में यह जिक्र नहीं कि, कब से लागू होगा। सरकार ने इसे लागू करने का अधिकार अपने पास रखा है। राष्ट्रपति की अधिसूचना का समय भी स्पष्ट नहीं।
बिल पास होने पर क्या होगा?
जानकारी के मुताबिक, यदि लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा अपने पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले भंग हो जाती है, तो उस विधानसभा के शेष पांच वर्ष के कार्यकाल को पूरा करने के लिए ही मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे, विधेयक में अनुच्छेद 82(ए) (लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव) जोड़ने तथा अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), 172 और 327 (विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि, ये प्रावधान एक ‘नियत तिथि’ से लागू होंगे, जिसे राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक में अधिसूचित करेंगे। जानकारी के अनुसार, 2029 के चुनाव के बाद राष्ट्रपति अधिसूचना जारी कर लोकसभा की पहली बैठक की तारीख (अप्वाइंटेड डेट) तय करेंगे। फिर 5 साल लोकसभा का फुल टर्म 2034 में पूरा होगा। इसके साथ ही सभी विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा मान लिया जाएगा, तब चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।
कैसे होंगे एक साथ चुनाव?
जानकारी के मुताबिक, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहला लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए, और दूसरा आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों के लिए सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची होगी। वहीं राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा मतदाता पहचान पत्र तैयार किए जाएंगे। केंद्र सरकार पूरे देश में विस्तृत चर्चा शुरू करेगी।
तैयारी में कितना वक्त चाहिए?
बुनियादी जरूरतों के हिसाब से 2034 की टाइमलाइन मेल खाती है। निर्वाचन आयोग को एक चुनाव के लिए कम से कम 46 लाख ईवीएम चाहिए। अभी 25 लाख मशीनें हैं। मशीनों की एक्सपायरी 15 साल है। दस साल में 15 लाख मशीनें उम्र पूरी कर लेंगी। मशीनों के इंतजाम में भी 10 साल लगेंगे।
संविधान के दायरे में है बिल, एनडीए एकजुट
मेघवाल ने कहा-बिल राज्यों की शक्तियों को छीनने वाला नहीं, बल्कि संविधान सम्मत है। अनुच्छेद 368 संसद को ऐसे संशोधन की शक्ति देता है। वहीं, एनडीए के तीन सबसे बड़े सहयोगी दलों, टीडीपी और जदयू और शिवसेना शिंदे ने विधेयक का समर्थन किया है। व्हिप के बावजूद सदन में न होने पर भाजपा अपने 20 सांसदों को नोटिस देगी।
यह जनता से वोट का हक छीनने का षड्यंत्र
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा- यह बिल नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर हमला है। तृणमूल कांग्रेस ने बिल को संविधान के मूल ढांचे पर हमला बताया है। डीएमके, सपा, एनसीपी-एस, शिवसेना-यू और एआईएमआईएम सहित विभिन्न विपक्षी के दलों ने इसे फेडरल सिस्टम के खिलाफ बताया है।