लखनऊ। हर साल मकर संक्रांति के पर्व पर नागा संन्यासियों के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आता है, जब उन्हें उनके कठिन तप और कड़ी परीक्षा के बाद दिगंबर की उपाधि दी जाती है। इस वर्ष शैव अखाड़ों के 2028 नागा संन्यासियों को यह उपाधि दी जाएगी। ये संन्यासी छह साल पहले अखाड़ों द्वारा दीक्षित किए गए थे और अब उनकी परंपरा, अनुशासन और संस्कार की परीक्षा में सफलता पर उन्हें दिगंबर की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा।
नागा संन्यासियों का जीवन अत्यंत कठोर और तपस्वी होता है। दीक्षा के दौरान उन्हें कई कठिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिनमें मुंडन, पिंडदान, और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा शामिल है। इसके साथ ही, वे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए ‘टांग तोड़’ जैसी गुप्त प्रक्रिया से गुजरते हैं, जो मकर संक्रांति के स्नान से पहले अखाड़ों की धर्मध्वजा के नीचे सम्पन्न होती है।
दिगंबर की उपाधि प्राप्त करने वाले नागा संन्यासियों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। अब वे अखाड़े की सुरक्षा, आंतरिक व्यवस्था और समस्त नागा संन्यासियों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखेंगे। इसके अलावा, वे अखाड़े में होने वाली अमृत स्नान जैसी धार्मिक प्रक्रियाओं में भी अग्रणी भूमिका निभाएंगे और आचार्य महामंडलेश्वर की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
नागा संन्यासी बनने के लिए छह वर्ष तक परीक्षा दी जाती है। इस दौरान, संन्यासी को कड़े अनुशासन और तपस्या का पालन करना होता है। अगर वह इन सब में असफल रहता है तो उसे वापस भेज दिया जाता है। केवल वही व्यक्ति, जो इन कड़ी शर्तों को पूरा करता है, उसे दिगंबर की उपाधि प्रदान की जाती है और अखाड़े में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।
इस विशेष अवसर पर मकर संक्रांति के दिन, दिगंबर नागा संन्यासी अमृत स्नान में सबसे पहले शामिल होते हैं, जहां वे अपने आचार्य और शस्त्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए अन्य संन्यासियों का मार्गदर्शन करते हैं।