Ramnami Samaj Culture And Tradition: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को कुछ घंटे रह गए हैं. प्राण प्रतिष्ठा और अयोध्या में भव्य मंदिर के उद्घाटन से पहले भगवान राम के कई भक्त की अनोखी और अलग कहानियां सामने आईं. कोई दौड़कर अयोध्या तक पहुंचा है तो कोई पैदल चलकर… कोई रथ खिंचकर पहुंचा है तो किसी ने आसमान से स्काइडाइविंग कर भगवान राम के नाम की पताका लहराई है. इन भक्तों के बीच आज रामलला के सबसे बड़े भक्त संप्रदाय की कहानी. ये संप्रदाय छत्तीसगढ़ से आती है. इनकी खासियत ये है कि ये अपने पूरे शरीर पर राम नाम की टैटू गुदवाते हैं. हाल ही में इस संप्रदाय को लेकर कांग्रेस के सीनियर नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर एक कहानी शेयर की.
दिग्विज सिंह ने शुक्रवार को एक्स पर लिखा… परसूराम जी को अनुसूचित जाति के होने के कारण 1890 में उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया. दुखी हो कर उन्होनें अपने कपाल (सिर) व पूरे शरीर पर ‘राम’ गुदवा लिया. वहीं से रामनामी संप्रदाय स्थापित हुआ. आज भी छत्तीसगढ़ में रामनामी संप्रदाय के लोग अपने पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम गुदवा लेते हैं. इनसे बड़ा राम भक्त कौन हो सकता है? क्या इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर विश्व हिंदू परिषद ने आमंत्रित किया?
एक अन्य पोस्ट में दिग्विजय सिंह ने कहा कि चंपत राय ने कहा कि समस्त महादेव के धर्म गुरु पितृ जी की पीठ में यह कहा गया है कि राम लला के मंदिर पर रामानंदी संप्रदाय का हक है. अब रामानंदी संप्रदाय के प्रमुख पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्य जी को सुनिए. पहले 2500 वर्ष पुरानी पितृ जी की गादी को अपमानित किया गया और अब सभी रामानंदी संप्रदाय को अपमानित किया गया। चम्पत राय और विश्व हिंदू परिषद को सभी तीर्थों के पूर्वजों से और रामानंदी संप्रदाय के प्रमुख स्वामी रामनरेशाचार्य जी से माफ़ी मांगना चाहिए.
जुलाई 2022 में भी दिग्विजय सिंह ने किया था ट्वीट
छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर रामानामी संप्रदाय के लोग हैं, जिन्हें उच्च जाति की ओर से मंदिर प्रवेश ना करने पर 1980 में श्री परशुराम जो कि वंचित वर्ग से थे, उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा लिया. श्री परशुराम ने मंदिर प्रवेश से वंचित किए जाने के बाद यह जताने के लिए ‘राम हमारे रोम रोम में हैं कण कण में हैं’ पूरे शरीर पर राम राम गुदवा लिया. इससे अधिक राम के प्रति और कोई समर्पण हो सकता है क्या? भगवान श्री राम सबके हैं कोई एक विशेष वर्ग के नहीं हैं.
मंदिर जाने के बजाए तन-बदन को मंदिर बनाने वाला संप्रदाय के बारे में जानिए
जैसा कि दिग्विजय सिंह ने दावा किया है कि रामनामी संप्रदाय के पूर्वजों को जब मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं मिली, तो उन्होंने अपने तन-बदन को ही मंदिर बना लिया. छत्तीसगढ़ में रहने वाले संप्रदाय को ही रामनामी संप्रदाय के नाम से जाना जाता है. राम इनके लिए भगवान तो हैं ही, इस संप्रदाय ने भगवान राम को अपनी संस्कृति का हिस्सा भी बना लिया. इसके मुताबिक, रामनामी जनजाति के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण भाग है. ये एक ऐसी संस्कृति है, जिसमें राम नाम को कण-कण में बसाने की परंपरा है. अपने शरीर के किसी भी हिस्से में राम नाम लिखवाने वालों को रामनामी, माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को सर्वांग रामनामी और शरीर के प्रत्येक हिस्से पर राम नाम लिखवाने वाले को नखशिख रामनामी कहा जाता है.
शरीर पर राम का नाम, सिर पर मोरपंख वाली पगड़ी है इनकी पहचान
अगर आप छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के चारपारा गांव से गुजरते हैं और कोई शख्स ऐसा दिखता है, जिसके पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम गुदा हुआ है, उसके सिर पर मोरपंख की पगड़ी है, समझ लीजिए कि वो शख्स रामनामी संप्रदाय से ताल्लुक रखता है. कहा जाता है कि अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम की पूजा और उनका नाम जपना ही इस संप्रदाय के जीवन का एकमात्र मकसद है.
रामनामी संप्रदाय का मानना है कि किसी भी सीमा और आनंद से ऊपर भगवान प्रभु श्रीराम की भक्ति करना ही है. शायद, इसलिए न सिर्फ रामनामी संप्रदाय के लोग अपने शरीर पर बल्कि घर की दीवारों पर भी भगवान राम लिखवाते हैं ताकि जब भी आंख खुले भगवान राम की भक्ति में जुट जाएं.
सिर्फ नाम नहीं… मर्यादापुरुषोत्तम के आदर्श को भी मानता है ये समुदाय
जानकारी के मुताबिक, सिर्फ भगवान राम को ही नहीं बल्कि इस समुदाय के लोग मर्यादापुरुषोत्तम के आदर्श को भी अपने जीवन में उतारते हैं. कहा जाता है कि इस संप्रदाय में झूठ बोलना, मांस-मदिरा का सेवन करना बिलकुल प्रतिबंधित है. रामनाम संप्रदाय के एक शख्स की मानें तो वे अपने इस परंपरा को हर हाल में बचाना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि उनके घरों में जब भी बच्चे का जन्म होता है तो उसके शरीर पर राम नाम गुदवा दिया जाता है. जानकारी के मुताबिक, जांजगीर-चांपा जिले में रहने वाले इस अनोखे और भगवान राम के सबसे बड़े भक्त माने जाने वाले समुदाय की आबादी करीब 5000 है.
आखिर में जानें इनकी उत्पत्ति की कहानी
कहा जाता है कि जब देश में कुछ लोग भक्ति के लिए देवी-देवताओं का बंटवारा कर रहे थे, तब रामनामी संप्रदाय उस वक्त दलितों की श्रेणी में आते थे. लिहाजा, न उन्हें भगवान की मूर्ति नसीब हुई और न ही मंदिर. कुएं से पानी निकालना और ऊंची जाति के सामने सिर उठाना तो पहले से ही मुश्किल था. ऐसे में जब कोई चारा नहीं बचा तो इस समुदाय ने भगवान राम को अपना आराध्या बनाया और अपने कण-कण में उन्हें बसाने की ठान ली. इसके बाद से ही शरीर पर राम नाम गुदवाने की परंपरा की शुरुआत हुई, जो आज तक चली आ रही है.