अहंकार हुआ चकनाचूर : मजदूर भुवन बंजारे को संघर्ष के बाद मिला इंसाफ, संयंत्र प्रबंधन को झुकना पड़ा
( रिपोर्टर रमेश बंजारे ) तिल्दा (छत्तीसगढ़)। इंसाफ की राह भले ही कठिन हो, पर जब संघर्ष सच्चाई के साथ होता है, तो बड़ा से बड़ा अहंकार भी चकनाचूर हो जाता है। तिल्दा के समीप रामदूत इस्पात प्राइवेट लिमिटेड संयंत्र में कार्यरत मजदूर भुवन बंजारे के साथ घटी त्रासदी और उसके बाद हुआ संघर्ष आज एक मिसाल बन गया है।
दुर्घटना का दर्दनाक दिन
दिनांक 3 मार्च 2024 को संयंत्र में कार्य करते समय भुवन बंजारे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। साथी मजदूरों ने उन्हें मोटरसाइकिल से तिल्दा अस्पताल पहुंचाया गया, जहाँ से डॉक्टरों ने उन्हें रायपुर रेफर किया। इलाज के बाद यह स्पष्ट हुआ कि वे अपने दाहिने हाथ से आजीवन अपंग हो गए हैं।
क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के साथ संयंत्र प्रबंधन से बार-बार गुहार लगाई गई, लेकिन हर बार आश्वासन मिला, अपमान झेलना पड़ा और निराशा हाथ लगी। जब सारी उम्मीदें टूट चुकी थीं, तब भुवन ने भारतीय जनता ट्रेड यूनियन काउंसिल के प्रदेश सचिव एवं नव निर्वाचित सरपंच प्रतिनिधि योगेन्द्र बघेल से संपर्क किया।
शुरू हुआ न्याय का संघर्ष
योगेन्द्र बघेल ने इस मामले को गंभीरता से लिया और SDM कार्यालय व स्थानीय थाने में आवेदन प्रस्तुत किया। लेकिन जब कोई कार्यवाही नहीं हुई, तो उन्होंने संगठित आंदोलन की राह पकड़ी। इस आंदोलन ने प्रशासन और संयंत्र प्रबंधन को हिला कर रख दिया।
संघर्ष की जीत – मिला मुआवजा
लगातार संघर्ष और दबाव के परिणामस्वरूप आज दिनांक 19 अप्रैल 2025 को संयंत्र प्रबंधन ने भुवन बंजारे को 6 लाख रुपये का मुआवजा चेक सौंपा और 60 वर्ष की आयु तक मासिक पेंशन भुगतान की घोषणा की। यह एक ऐतिहासिक जीत है जो संगठित आवाज़ और नेतृत्व की ताकत को दर्शाती है।
इनका रहा विशेष योगदान
इस न्याय के संघर्ष में जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि श्री शैल महेन्द्र साहू और कुंदरु सरपंच यशवंत वर्मा, जनपद सोनू निर्मलकर,एवं जलसों नकटी सरपंच योगेंद्र बघेल उप सरपंच दिनेश वर्मा, खमहरिया सरपंच ,पंच आनंद बंजारे ,अरविंद बंजारे , इत्यादि सभी का विशेष योगदान रहा। उन्होंने हर मोर्चे पर समर्थन देकर मजदूर के हक की लड़ाई को मजबूती दी।
निष्कर्ष: संगठित आवाज़ ही है असली ताकत
भुवन बंजारे की कहानी न केवल एक मजदूर को मिला न्याय है, बल्कि यह एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो अन्याय के आगे झुक जाते हैं। योगेन्द्र बघेल और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि जब जनता संगठित होती है, तो कोई भी व्यवस्था जवाब देने को मजबूर हो जाती है।