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“वह रे भ्रष्टाचार! — जब दो ‘विरोधी’ अफसर बन जाएं साझीदार, सौरभ ठाकुर को बचाने में लगे हैं करोड़ों की डील में”

कोरिया/बिलासपुर/रायपुर

“वाह रे भ्रष्टाचार! — छत्तीसगढ़ के वन विभाग में भ्रष्टाचार की एक ऐसी कहानी सामने आई है, जिसने अफसरशाही की नैतिकता और जवाबदेही दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व में 1.38 करोड़ रुपए की भारी अनियमितता के बावजूद कार्रवाई ठप है — और आश्चर्य की बात ये है कि दो पुराने दुश्मन, वर्तमान वनबल प्रमुख व पीसीसीएफ श्री व्ही. श्रीनिवास राव और वन्यप्राणी पीसीसीएफ श्री सुधीर अग्रवाल, जो पिछले दो वर्षों से न्यायालयों में एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े हैं, अब इस घोटाले में एकजुट नजर आ रहे हैं।

जांच अधिकारी

 

क्या है मामला?

IFS अधिकारी सौरभ सिंह ठाकुर, जो तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व के संचालक हैं, पर आरोप है कि उन्होंने जंगल क्षेत्र में बिना कार्य कराए ही 7 स्टॉपडेम के लिए 1.38 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। शिकायत मिलने के बाद वनबल प्रमुख श्री राव ने उन्हें एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस के जवाब में ठाकुर ने स्वीकार किया कि दो स्टॉपडेम पर आंशिक कार्य हुआ है और पाँच पर काम शुरू ही नहीं हुआ, लेकिन भुगतान कर दिया गया। यानी यह स्पष्ट प्रमाण है कि भुगतान बिना निर्माण कार्य के किया गया — सीधा भ्रष्टाचार।

फिर क्यों नहीं हुई कार्रवाई?

यहां से कहानी में मोड़ आता है — कार्रवाई के बजाय जाँच को 25 दिन से रोका गया है। जाँच अधिकारी सीसीएफ मनोज पाण्डेय रिपोर्ट नहीं सौंप रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, सौरभ ठाकुर ने विभागीय और राजनीतिक नेटवर्क का उपयोग कर भारी आर्थिक लेनदेन के ज़रिए जाँच को प्रभावित किया है।

सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस प्रकरण में सुधीर अग्रवाल और श्रीनिवास राव, जो अदालतों में आमने-सामने खड़े दिखते हैं, अब एकजुट होकर सौरभ ठाकुर को बचाने में लगे हैं। यह प्रश्न उठता है कि क्या भ्रष्टाचार इन दोनों वरिष्ठ अफसरों को भी जोड़ सकता है?

RTI से चौंकाने वाला खुलासा

जब RTI के तहत वन्यप्राणी विभाग से रिपोर्ट मांगी गई तो सुधीर अग्रवाल ने उत्तर दिया कि “जाँच प्रक्रियाधीन है, इसलिए रिपोर्ट देना संभव नहीं है।” यह जवाब तब है जब शिकायत किए 25 दिन से अधिक हो चुके हैं और सारे साक्ष्य मौजूद हैं।

सवाल जो शासन को सोचने होंगे:

अगर दोषी स्पष्ट रूप से जवाब में स्वीकार कर रहा है कि काम नहीं हुआ, तो फिर क्यों नहीं हुई DE जांच?

क्या विभागीय प्रमुख और वरिष्ठ अधिकारी भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं?

क्या करोड़ों की सांठगांठ में दो चिर-विरोधी अधिकारी भी समझौता कर सकते हैं?

निष्कर्ष:

“जब सैयां कोतवाल हो, तो डर किस बात का” — यह कहावत इस पूरे मामले पर पूरी तरह सटीक बैठती है।
IFS सौरभ ठाकुर जंगल, वन्यप्राणी और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए बच निकलने की कोशिश में हैं, और उन्हें संरक्षण मिल रहा है उन्हीं अफसरों से जो आम जनता की नजर में एक-दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते हैं।


शासन को चाहिए कि वह इस मामले में सो मोटो संज्ञान लेकर सौरभ ठाकुर को तत्काल निलंबित कर DE जांच शुरू करे और वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच कराए।

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