नई दिल्ली। महिलाओं के जेवरों-गहनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। श्रीश अदालत ने कहा है कि महिला का स्त्रीधन उसकी पूर्ण संपत्ति है, उसमें किसी को हिस्सेदारी देने की मजबूरी नहीं है। महिला अपनी मर्जी से उस स्त्रीधन खर्च कर सकती है, वो ही उसकी पूरी तरह से मालकिन है। ससुराल के लोग उस स्त्रीधन में से कुछ भी नहीं ले सकते हैं। अदालत ने कहा कि, संकट के समय पति पत्नी के स्त्रीधन का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन संपत्ति लौटाना उसका नैतिक दायित्व है। अदालत ने एक महिला के खोए हुए सोने के बदले 25 लाख रुपये लौटाने का निर्देश देते हुए अपने फैसले में यह अहम बात कही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए पति को अपनी पत्नी के सभी आभूषण छीनने के लिए 25 लाख रुपये की आर्थिक क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है। महिला अब 50 वर्ष की है। सुप्रीम कोर्ट ने जीवन-यापन की लागत में वृद्धि और समता एवं न्याय के हित को ध्यान में रखते हुए महिला को क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के 5 अप्रैल, 2022 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उसने तलाक मंजूर करते हुए पति और सास से सोने के मूल्य के रूप में 8.9 लाख रुपये वसूलने के फैमिली कोर्ट के 2011 के आदेश को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क को नकार दिया कि एक नवविवाहित महिला को पहली रात ही सारे सोने के आभूषणों से वंचित कर दिया जाना विश्वसनीय नहीं है।
ये था पूरा मामला
महिला ने आरोप लगाया कि उसके गहने शादी के पहले ही दिन उसके पति ने ले लिए थे और रिश्ते में खटास आने के बाद और उनके अलग होने के फैसले के बाद उसने अपनी संपत्ति वापस पाने के लिए पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया। 2009 में पारिवारिक अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और उसके पति को उसे 8.9 लाख रुपये देने का आदेश दिया। लेकिन केरल हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पत्नी यह साबित करने में असफल रही है कि उसका ‘स्त्रीधन’ उसके पति ने लिया था।
क्या होता है स्त्रीधन?
ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर स्त्रीधन क्या है और इसके दायरे में क्या-क्या आता है? दरअसल स्त्रीधन एक कानूनी टर्म है, जिसका जिक्र हिंदू धर्म में देखने को मिलता है। स्त्रीधन का अर्थ है महिला के हक का धन, संपत्ति, कागजात और अन्य वस्तुएं. एक आम धारणा ये है कि महिलाओं को शादी के दौरान जो चीजें उपहारस्वरूप मिलती हैं, उन्हें ही स्त्रीधन माना जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है। स्त्रीधन में किसी महिला को बचपन से लेकर भी जो चीजें मिलती हैं, वह भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं। इनमें नकदी से लेकर सोना, हर तरह के तोहफे, संपत्तियां और बचत भी शामिल है। आसान शब्दों में कहें तो जरूरी नहीं है कि शादी के दौरान या शादी के बाद मिले इस तरह के उपहारों को ही स्त्रीधन माना जाए। स्त्रीधन पर अविवाहित स्त्री का भी कानूनी अधिकार है। इसमें वे सारी चीजें आती हैं, जो किसी महिला को बचपन से लेकर मिलती रही हों। इसमें छोटे-मोटे तोहफे, सोना, कैश, सेविंग्स से लेकर तोहफे में मिली प्रॉपर्टी भी आती है।