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November 21, 2024
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अजब-गजब: शमशान घाट पर चुनाव कार्यालय, अर्थी पर बैठकर नामांकन, आखिर कौन है यह अनोखा प्रत्याशी

नई दिल्ली। सत्ता की चाह, लोगों से कुछ भी कराने की ताकत रखती है। लोग राजनीतिक सत्ता के लिए उल्टे पैर खड़ा होने को भी तैयार होते है। अगर कुर्सी के लिए कुत्ते को मालिक बनाना हो तो भी पीछे नहीं हटेंगे। इसके कई उदाहरण पहले भी सामने आ चुके है। जहां उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए सड़क किनारे बैठे भिखारी से चप्पल भी खाए है।

ऐसा ही कुछ अजब-गजब मामला उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से सामने आया है। जहां लोकसभा चुनाव में जीत की चाहत रखने वाले अर्थी बाबा उर्फ़ राजन यादव ने शमशान घाट में अपना चुनाव कार्यालय खोला है। बाबा सत्ता की मलाई की चाह में हर चुनाव में अपनी किस्मत आजमाते है। लेकिन अफ़सोस अभी तक वह उससे दूर ही रहे है।

अर्थी बाबा ने इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उतरने का मूड बनाया है। इसके लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी है। उन्होंने अपना चुनाव कार्यालय एक शमशान घाट में खोल लिया है। यहां उनके पूल एजेंट आत्माएं होगी। इतना ही नहीं अर्थी बाबा अर्थी में ही बैठकर नामांकन करने जाते है। उनका कहना है कि वह जनता की सेवा के लिए एक अवसर चाहते हैं, इसलिए इस बार के लोकसभा चुनाव में पर्चा भरने से पहले उन्होंने श्‍मशान घाट पर ही अपना कार्यालय खोल दिया है। चुनाव में वे आत्माओं को पोलिंग एजेंट बनाते हैं।

पहले भी आजमा चुके है किस्मत

एमबीए पास और गृहस्‍थ जीवन का त्याग कर चुके अर्थी बाबा ने एमएलए, एमएलसी और एमपी के चुनाव में अपनी अनोखी कार्यशैली से पहचान बनाई है। वह राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने का भी दावा करते है। हालांकि वो अलग बात है कि उन्हें अबतक जीत नसीब नहीं हुई है। इन्होंने गोरखपुर राजघाट श्‍मशान के गोरखनाथ घाट पर अपना चुनावी कार्यालय खोला है। वे कहते हैं कि इसकी वजह है कि लोकतंत्र का जनाजा निकल चुका है। लोकतंत्र भ्रष्‍ट हो चुका है। नेता भ्रष्ट हो चुका है।

शमशान घाट में कार्यालय खोलने से पहले उन्होंने अपने लिए जनता से समर्थन मांगा है और अर्थी में बैठकर प्रचार किया। शमशान घाट पर मौजूद लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले इस अनोखे प्रत्‍याशी को देखकर हैरत में पड़ गए। अर्थी बाबा का कहना है कि वह पिछले कई सालों से जनता की सेवा कर रहे है। यहाँ पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। वह अपने संघर्षों के आधार पर वो जनता से वोट मांग रहे हैं. वह जीतते हैं तो जनता की सेवा करेंगे।

अंतिम संस्कार करने आये लोगों से लेते है चंदा

आर्थिक तंगी के कारण चुनाव लड़ने के पैसे भी अर्थी बाबा के पास नहीं होते। इसके लिए वह अंतिम संस्कार करने आने वाले लोगों से एक रुपए चंदा लेते हैं, जिससे कि चुनाव लड़ सकें। वे बताते हैं कि चुनाव में आत्‍माएं ही उनकी पोलिंग एजेंट होती हैं। जैसे भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होती है। तो आत्‍माओं के अस्तित्‍व को भी नकारा नहीं जा सकता है।

2017 में अर्थी में बैठकर पहुंचे थे रिटर्निंग आफिसर के पास

अर्थी बाबा साल 2017 में अर्थी में बैठकर नामांकन भरने रिटर्निंग ऑफिसर के यहां पहुंचे थे। हालांकि उस चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी। लेकिन वह सुर्ख़ियों में आ गए थे। इसके बाद वह साल 2009 के चुनाव में भी नामांकन अर्थी पर बैठकर दाखिल किया था। उस वक्‍त भी उन्होंने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी। इसके आलावा वह 2012, 2014 और 2017 के चुनाव में भी वह अर्थी में बैठकर नामांकन करने पहुंचे थे। हद तो तब हो गई थी, जब वे अन्‍ना के आंदोलन में शामिल होने के लिए गोरखपुर से अर्थी लेकर दिल्ली पहुंच गए थे। वहीं पुलिस ने इन्‍हें पकड़कर बैरंग वापस गोरखपुर भेज दिया था।

साल 2021 में एमबीए की डिग्री लेने के बाद अर्थी बाबा अपने अजब-गजब तरीके से चुनावी मैदान में उतरते रहे है। वे प्रधानी से लेकर लोकसभा तक का चुनाव कई बार लड़ चुके हैं। लेकिन विजय श्री अभी तक उन्हें हाथ नहीं लगी है। हर बार जीत का दावा करने वाले अर्थी बाबा को अब तक हर बार हार का सामना ही करना पड़ा है। इस बार भी अर्थी बाबा चुनावी मैदान में है। वह जीत भले ही हासिल ना कर सके, लेकिन लोगों का मनोरंजन बखूबी करते है।

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