Ram Mandir Consecration Ceremony: कानून की पढ़ाई कर रहे चार छात्रों ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा (22 जनवरी) के मौके पर घोषित किए गए सार्वजनिक अवकाश के फैसले को चुनौती दी है. MNLU, मुंबई लॉ स्कूल, जीएलसी और NIRMA Law School में पढ़ने वाले चार छात्रों शिवांगी अग्रवाल (20), सत्यजीत साल्वे (21), वेदांत अग्रवाल (19) और खुशी बंगला (21) ने सरकार के इस फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी है कि महाराष्ट्र सरकार का यह कदम भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के खिलाफ है.
‘संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के अनुरूप नहीं सरकार का फैसला’
मुंबई लॉ फर्मों में इंटर्न कर रहे कानून के इन छात्रों ने राज्य सामान्य प्रशासन विभाग के 22 जनवरी को सार्वजनिक अवकाश के फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में सरकार की भागीदारी संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के अनुरूप नहीं है.
त्वरित सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में स्पेशल बेंच का गठन
मामले पर त्वरित सुनवाई की छात्रों की मांग पर बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस गिरीश कुलकर्णी द्वारा एक स्पेशल बेंच का गठन किया गया है.
आज रात साढ़े दस बजे होगी सुनवाई
इस पूरे मामले पर आज रविवार 21 जनवरी को रात 10:30 सुनवाई होगी. छात्रों ने कहा कि उन्होंने याचिका सार्वजनिक हित में दायर की है और इसका किसी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है.
भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को पहुंच सकता है नुकसान
छात्रों ने कहा कि उन्हें राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा और 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच संबंध होने पर संदेह है. उन्होंने कहा कि संविधान राज्यों को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की शक्ति देता है लेकिन वे संविधान के धर्मनिरपेक्ष दिशानिर्देशों को दरकिनार कर अपने राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा नहीं कर सकते, इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को नुकसान पहुंच सकता है.
बताया अनुच्छेद 14 का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए छात्रों ने जस्टिस रामास्वामी को उद्धृत किया जिन्होंने कानून या कार्यकारी आदेशों के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने के राज्य के कर्तव्यों पर जोर दिया था. छात्रों ने कहा कि राज्य सरकार का फैसला अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और इसका शिक्षा, वित्त और शासन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.