रायपुर। बीतें दिनों छत्तीसगढ़ में हुए 2,200 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में शामिल सिंडीकेट ने कमीशनखोरी के लिए झारखंड के अधिकारियों को भी विश्वास में लेकर वहां भी शराब नीति में बदलाव करवाया। इससे भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी को बढ़ावा मिला।
ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज की गई FIR के अनुसार, छत्तीसगढ़ के एफएल 10 ए की तर्ज पर झारखंड में एफएल 1 ए लाइसेंस जारी किया गया। इसके माध्यम से डिस्टलिरियों को सरकार के अधीन लेकर नकली होलोग्राम लगाकर अवैध शराब की बिक्री का खेल पूरे झारखंड में मई 2022 से शुरू किया गया। इससे झारखंड के 2022-23 के आबकारी राजस्व में करोड़ रुपये की कमी आई।
वहीं इस पूरे सिंडीकेट में कांग्रेस की भूपेश सरकार के करीबी रहे छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कारपोरेशन लिमिटेड सीएसएमसीएल (CSMCL) के तत्कालीन एमडी अरुणपति त्रिपाठी, कांग्रेस नेता व रायपुर के महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर और अनिल टुटेजा की इसमें अहम भूमिका रही। इन्होंने जनवरी 2022 में अपने सिंडीकेट के माध्यम से झारखंड में शराब की कीमतें बढ़ाने से लेकर नई नीति तैयार करने के लिए झारखंड के आबकारी विभाग के तत्कालीन सचिव विनय कुमार चौबे और संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह के साथ दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 में रायपुर में बैठक हुई। इसके बाद झारखंड विस में संकल्प पत्र भी पारित किया गया। 31 मार्च 2022 को झारखंड उत्पाद नियमावली लागू की गई। इसके लिए एपी त्रिपाठी को बतौर कंसल्टेंट नियुक्त किया गया और 1.25 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया गया।
चार वर्ष में 115 करोड़ की कमाई
बता दें कि, छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले पर कोर्ट में पेश किए गए चालान के अनुसार, मदिरा की प्रति पेटी की कीमतों को 2,880 रुपये से बढ़ाकर 3,840 रुपये किया गया। इसमें 560-600 रुपये प्रति पेटी के हिसाब से शराब सप्लायरों को भुगतान किया जाता था, जबकि 150 रुपये प्रति पेटी के हिसाब से आबकारी अधिकारियों ने चार साल में 115 करोड़ रुपये की कमाई की है। वहीं, शेष हिस्सा अनवर ढेबर के पास रहता था और इसका 15 प्रतिशत कमीशन अनिल टुटेजा और एपी त्रिपाठी को दिया जाता था। यही खेल झारखंड में भी नई शराब नीति के तहत भी खेला गया।
जानिए, क्या है एफएल-10 ए लाइसेंस
जानकारी के अनुसार, एफएल-10 ए लाइसेंस में विदेशी शराब की खरीदी की जाती थी। इसमें शराब की खरीदी, भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन का काम किया जाता था। एफएल-10 लाइसेंस दो तरह के थे। एफएल-10 ए लाइसेंस के तहत, प्रतिष्ठित शराब कंपनियां शराब की थोक खरीदारी कर सरकार को बेचती थी। एफएल-10 बी लाइसेंस के तहत, राज्य के डिस्टिलरी और सरकार के बीच शराब की खरीदी- बिक्री होती थी। विष्णु देव साय की सरकार बनने के बाद भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी को बढ़ावा देने वाली इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया।