RSS Chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि को ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाना चाहिए. क्योंकि इस दिन देश की सच्ची स्वतंत्रता का प्रतीक स्थापित हुआ था. भागवत ने यह बात इंदौर में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चम्पत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ देने के अवसर पर कही. उन्होंने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पिछले साल 22 जनवरी 2024 को हुई थी, जो इस साल 11 जनवरी को आई थी.
मोहन भागवत ने 15 अगस्त 1947 के बाद की राजनीति पर भी टिप्पणी की, जिसमें भारत को ‘राजनीतिक स्वतंत्रता’ तो मिली, लेकिन संविधान उस समय के दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं था. संघ प्रमुख ने यह भी बताया कि राम, कृष्ण और शिव के आदर्श भारत के ‘स्व’ का हिस्सा हैं, और यह नहीं माना जा सकता कि ये देवता केवल उन्हीं के लिए हैं जो उनकी पूजा करते हैं. आक्रांताओं ने देश के मंदिरों को नष्ट किया क्योंकि वे चाहते थे कि भारत का ‘स्व’ मर जाए. भागवत ने यह स्पष्ट किया कि राम मंदिर आंदोलन का उद्देश्य किसी व्यक्ति का विरोध या विवाद पैदा करना नहीं था, बल्कि यह भारत के आत्मविश्वास को जगाने के लिए था.
क्यों लंबा चला राम मंदिर आंदोलन?
भागवत ने यह भी कहा कि राम मंदिर आंदोलन इस कारण लंबा चला क्योंकि कुछ शक्तियां नहीं चाहती थीं कि अयोध्या में राम का मंदिर बने. उन्होंने यह भी कहा कि पिछले वर्ष अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय देश में कोई विवाद या झगड़ा नहीं हुआ था और लोग इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने.
मुलाकात के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें बताया था कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष संविधान है और भारतीय परंपरा में धर्मनिरपेक्षता की शिक्षा दी गई है, जो 5000 साल पुरानी है.
राम मंदिर हिंदुस्तान की मूछ- चम्पत राय
चम्पत राय ने पुरस्कार प्राप्त करने के बाद इसे राम मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी ज्ञात और अज्ञात लोगों को समर्पित किया. उन्होंने कहा कि यह मंदिर ‘हिंदुस्तान की मूंछ’ और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है. पुरस्कार समारोह में सुमित्रा महाजन ने कहा कि देवी अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए इंदौर में उनके भव्य स्मारक का निर्माण किया जाएगा.