इस्लाम में हलाला क्या है?
इस्लाम में विवाह (निकाह) एक पवित्र बंधन माना जाता है, जिसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इसी कारण, तलाक को इस्लाम में एक अंतिम उपाय बताया गया है। हलाला का जिक्र इस्लामिक कानून (शरीयत) में एक विशिष्ट परिस्थिति में आता है, जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक देकर उसे अलग कर देता है और बाद में उससे पुनर्विवाह करना चाहता है।
हलाला का कुरआन और हदीस में उल्लेख
कुरआन में हलाला का उल्लेख
हलाला की संकल्पना का आधार सूरह अल-बक़रा (2:229-230) में मिलता है:
“तलाक (दो बार तक) है। फिर (या तो) भलाई के साथ रोक लेना है या नेकनीयती के साथ विदा कर देना है… फिर यदि उसने (तीसरी बार भी) तलाक दे दी, तो अब वह उसके लिए हलाल नहीं, जब तक कि वह किसी अन्य पति से निकाह न कर ले।” (कुरआन 2:229-230)
इस आयत के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तीन तलाक दे चुका है, तो वह तब तक अपने पहले पति के लिए जायज़ (हलाल) नहीं होती जब तक कि वह किसी दूसरे पुरुष से शादी न कर ले और वैध रूप से उस शादीशुदा जीवन को व्यतीत न करे। यदि किसी कारणवश उसका दूसरा विवाह समाप्त हो जाता है (तलाक या मृत्यु के कारण), तब वह पहले पति से पुनः निकाह कर सकती है।
हदीस में हलाला का उल्लेख
- नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने “प्लान्ड हलाला” की निंदा की है।
- इब्ने माजह की एक हदीस के अनुसार, रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा:
“क्या मैं तुम्हें किराए के सांड (मुअल्लक निकाह) के बारे में न बताऊँ? यह वह व्यक्ति है जो किसी औरत से इसलिए विवाह करता है कि वह उसे अपने पहले पति के लिए हलाल बना सके। अल्लाह ऐसे व्यक्ति और ऐसा करवाने वाले दोनों पर लानत करता है।” (इब्ने माजह 1936, अबू दाऊद 2076)
- इब्ने माजह की एक हदीस के अनुसार, रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा:
- हलाला की प्राकृतिक प्रक्रिया
- इस्लाम में यह आवश्यक नहीं कि दूसरा निकाह केवल हलाला के उद्देश्य से किया जाए। बल्कि, अगर कोई स्त्री अपने दूसरे पति के साथ वास्तविक रूप से वैवाहिक जीवन व्यतीत करती है और किसी कारणवश दूसरा विवाह टूट जाता है, तो ही वह पहले पति से निकाह कर सकती है।
इस्लाम में हलाला को लेकर गलतफहमियां
- जबर्दस्ती या व्यावसायिक हलाला हराम (निषिद्ध) है
- कुछ जगहों पर जबरन हलाला या पैसे देकर हलाला करवाने की प्रथा सामने आई है, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। इस्लाम में किसी भी महिला को जबरन हलाला के लिए विवश करना हराम है।
- हलाला एक शर्त नहीं, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रिया है
- यदि तलाक के बाद स्त्री किसी अन्य पुरुष से स्वाभाविक रूप से विवाह करती है और बाद में तलाक होता है, तो ही वह पहले पति से विवाह कर सकती है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वह सिर्फ पहले पति से विवाह करने के लिए ऐसा करे।
- हलाला का उद्देश्य तलाक को हल्के में लेने से रोकना है
- इस्लाम में विवाह एक पवित्र अनुबंध (मिसाक़ गलीज़) है। इसीलिए, तलाक देने से पहले अच्छी तरह सोचने और समझने की सलाह दी गई है। हलाला की शर्त तलाक को गंभीरता से लेने की सीख देती है।
निष्कर्ष
इस्लाम में हलाला का उद्देश्य यह है कि लोग तलाक को हल्के में न लें और बार-बार तलाक देने और लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगे। लेकिन योजनाबद्ध (प्लान्ड) हलाला इस्लाम में हराम और निंदनीय है। वास्तविक इस्लामिक दृष्टिकोण के अनुसार, यदि कोई महिला अपने दूसरे पति से स्वाभाविक रूप से तलाक लेती है या विधवा हो जाती है, तब ही वह अपने पहले पति से पुनर्विवाह कर सकती है।