Consumer Forum: मध्य दिल्ली जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने इमामी लिमिटेड पर अनुचित व्यापार व्यवहार का आरोप लगाते हुए 15 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. यह मामला कंपनी के उत्पाद “फेयर एंड हैंडसम क्रीम” से जुड़ा हुआ था, जिसमें एक उपभोक्ता ने क्रीम के विज्ञापन को भ्रामक और गुमराह करने वाला बताया था. शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसने 2013 में 79 रुपये में क्रीम खरीदी थी, लेकिन वह त्वचा में गोरेपन का दावा किए गए परिणाम प्राप्त करने में असमर्थ रहा.
यह मामला इमामी लिमिटेड के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत के रूप में सामने आया, जिसमें शिकायतकर्ता ने यह आरोप लगाया कि उसने पैकेजिंग और लेबल पर दिए गए निर्देशों के अनुसार क्रीम का नियमित रूप से उपयोग किया था, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. शिकायतकर्ता के अनुसार, क्रीम के उपयोग के बाद उसे त्वचा में गोरापन नहीं मिला, जैसा कि कंपनी ने विज्ञापन में वादा किया था. इस मामले में फोरम के अध्यक्ष इंदर जीत सिंह और सदस्य रश्मि बंसल ने 9 दिसंबर को यह फैसला सुनाया.
कंपनी ने बहकाने का किया प्रयास
फोरम ने शिकायतकर्ता की दलील को ध्यान में रखते हुए कहा कि इमामी लिमिटेड ने उत्पाद के उपयोग को लेकर स्पष्ट और पूर्ण निर्देश नहीं दिए थे. कंपनी का कहना था कि शिकायतकर्ता ने सही तरीके से क्रीम का उपयोग नहीं किया और इसलिए उत्पाद दोषपूर्ण नहीं था. लेकिन फोरम ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह साबित करे कि शिकायतकर्ता ने क्रीम का गलत उपयोग किया था.
इसके अतिरिक्त, फोरम ने कहा कि क्रीम की पैकेजिंग पर यह जानकारी नहीं दी गई थी कि उत्पाद के परिणामों के लिए एक स्वस्थ जीवनशैली, पौष्टिक आहार, और नियमित व्यायाम जैसे अन्य कारकों की आवश्यकता होती है. इस प्रकार, उपभोक्ता को यह धारणा हो सकती थी कि उत्पाद का सही उपयोग करने से गोरेपन का दावा किए गए परिणाम मिलेंगे. फोरम ने इसे भ्रामक विज्ञापन और अनुचित व्यापार व्यवहार माना.
गलत विज्ञापनों को रोकने के लिए जुर्माना
अंत में, फोरम ने इमामी लिमिटेड पर 15 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि शिकायतकर्ता को 50,000 रुपये का दंडात्मक हर्जाना और 10,000 रुपये मुकदमेबाजी खर्च के रूप में दिए जाएं. यह राशि दिल्ली राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा की जाएगी. फोरम ने यह भी स्पष्ट किया कि दंडात्मक हर्जाना अन्य लोगों को ऐसे गलत कामों से रोकने के लिए लागू किया गया है.
यह मामला 2015 में शुरू हुआ था, जब फोरम ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन बाद में दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने इसे फिर से फोरम को भेज दिया था. इसके बाद, फोरम ने साक्ष्यों का गहन मूल्यांकन करते हुए नया आदेश पारित किया.