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March 4, 2025
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वन अफसर प्रभात मिश्रा का नया कारनामा: वनपाल को निलंबित कर मांगे पांच लाख रुपए?

रायपुर। छत्तीसगढ़ के वन विभाग में भ्रष्टाचार के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाकर उन्हें जबरन प्रताड़ित किया जा रहा है, जबकि असली गुनहगार बड़े अधिकारी बेखौफ घूम रहे हैं। ऐसा ही एक मामला बिलासपुर वन वृत्त से सामने आया है, जहाँ वनपाल हफीज खान को एक ही मामले में दो बार निलंबित कर दिया गया।

क्या है पूरा मामला?

वनपाल हफीज खान के क्षेत्र में 40 पेड़ों की अवैध कटाई की सूचना मिली, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। नियमानुसार, 45 दिनों के भीतर आरोप पत्र जारी किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब उन्होंने इस आधार पर अपनी बहाली का निवेदन देते हुए कार्य में उपस्थिति दी, तो CCF प्रभात मिश्रा ने व्यक्तिगत दुश्मनी निकालते हुए या फिर वन मंत्री के पीए के नाम पर 5 लाख रुपये की अवैध वसूली न होने के कारण, उन्हें फिर से निलंबित कर दिया।

किस यह व्यक्तिगत प्रतिशोध या भ्रष्टाचार की नई पराकाष्ठा ?

यह समझ से परे है कि एक ही मामले में किसी कर्मचारी को दो बार सस्पेंड कैसे किया जा सकता है? क्या यह प्रशासनिक प्रक्रिया का मजाक नहीं है? या फिर यह भ्रष्टाचार का नया तरीका है, जहाँ अधिकारियों की अवैध मांगें पूरी नहीं होने पर छोटे कर्मचारियों को कुचल दिया जाता है?

वर्तमान में हफीज खान पिछले  “6 महीने (180 दिन)” से निलंबित हैं। सवाल यह उठता है कि यह निलंबन उनके किसी गंभीर अपराध के कारण है या फिर इसलिए कि वह CCF प्रभात मिश्रा की अवैध मांगों को पूरा नहीं कर सके?

इस पूरे मामले में CCF प्रभात मिश्रा की भूमिका पर बड़ा सवाल खड़ा होता है। एक अधिकारी का काम न्याय और पारदर्शिता के साथ प्रशासन चलाना है, लेकिन यहाँ तो उल्टा हो रहा है।

अगर वन मंत्री के पीए के नाम पर  “5 लाख की वसूली” की जा रही थी, तो यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार की जड़ें ऊपर तक फैली हुई हैं। क्या CCF अब भ्रष्टाचार के नए दलाल बन गए हैं? क्या सरकारी पदों का उपयोग अब केवल रिश्वतखोरी और अवैध वसूली के लिए किया जाएगा?

क्या कहता है नियम, और क्या हो रही है मनमानी?

वन विभाग में किसी भी कर्मचारी के खिलाफ सस्पेंशन एक  “नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया” होती है, लेकिन इसे एक हथियार बनाकर इस्तेमाल करना पूरी तरह अवैध और अमानवीय है।

नियम क्या कहते हैं?

1. यदि किसी कर्मचारी को निलंबित किया जाता है, तो “45 दिनों के भीतर आरोप पत्र सौंपना अनिवार्य” है।
2. अगर  “45 दिनों में आरोप पत्र नहीं दिया गया”  तो कर्मचारी  “स्वतः बहाल माना जाएगा।
3. एक ही प्रकरण में **किसी कर्मचारी को दोबारा निलंबित करना गैरकानूनी** है।

**CCF की मनमानी क्या दिखाती है?**

– नियमों को ताक पर रखकर हफीज खान को दोबारा निलंबित करना  “साफ दर्शाता है कि यह प्रतिशोध और वसूली का मामला है”।
– अगर यह केवल प्रशासनिक कार्रवाई होती, तो  “45 दिनों में आरोप पत्र सौंपा जाता” और मामले का निपटारा किया जाता।
– “पिछले 6 महीनों से निलंबित रखने का कोई औचित्य नहीं बनता” , जब तक कि यह भ्रष्टाचार और वसूली से जुड़ा मामला न हो।

छोटे कर्मचारियों पर गाज, बड़े अधिकारी बेखौफ!

छत्तीसगढ़ वन विभाग में यह कोई पहला मामला नहीं है, जहाँ  IFS अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार के कारण छोटे कर्मचारियों का उत्पीड़न हो रहा है। पहले भी कई मामलों में देखा गया है कि बड़े अधिकारी  खुद भ्रष्टाचार करवाते हैं, फिर जब शिकायत होती है, तो छोटे कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई कर दी जाती है।

अगर यही सिलसिला चलता रहा, तो ईमानदारी से काम करने वाले कर्मचारी या तो नौकरी छोड़ देंगे या फिर भ्रष्टाचार के इस दलदल में धकेल दिए जाएंगे।

क्या सरकार जागेगी? वन मंत्री और मुख्यमंत्री की चुप्पी क्यों?

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या वन मंत्री और मुख्यमंत्री को इन घटनाओं की जानकारी नहीं है? या फिर वे  जानबूझकर इन मामलों को अनदेखा कर रहे हैं?

जब वनबल प्रमुख (PCCF) से इस पर सवाल किया जाता है, तो वे यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि “मेरे हाथ बंधे हैं, मैं कुछ नहीं कर सकता, ये लोग (DFO) डायरेक्ट माननीय मंत्री जी के टच में हैं ।”

तो फिर सवाल उठता है कि इस बेलगाम भ्रष्टाचार पर लगाम कौन लगाएगा?

– क्या मुख्यमंत्री को यह नहीं दिख रहा कि वन विभाग में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है?
– क्या वन मंत्री को इस बात का अहसास नहीं कि उनके नाम पर  अवैध वसूली की जा रही है?
– क्या कोई ईमानदार अधिकारी बचा है, जो इन मामलों पर निष्पक्ष जांच कर सके?

निष्कर्ष: क्या न्याय मिलेगा या भ्रष्टाचार जारी रहेगा?

वनपाल हफीज खान का मामला यह दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ वन विभाग में IFS अधिकारी अब बेलगाम हो चुके हैं।
– भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाया जा रहा है।
– अवैध वसूली पूरी नहीं होने पर उन्हें बार-बार निलंबित किया जा रहा है।
– उच्च अधिकारियों को बचाने के लिए वन मंत्री और मुख्यमंत्री ने भी चुप्पी साध रखी है।

अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या छत्तीसगढ़ सरकार इस पर कोई सख्त कदम उठाएगी या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह दबा दिया जाएगा?

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