एमपी में भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों में जो कर दिखाया वह अतुल्य है। 2023 के विधानसभा चुनावों में लोग भाजपा को चुनने टूट पड़े तो 2024 के लोकसभा में फिर वही प्रदर्शन दोहराया। मतलब 29 की 29। इनमें वह सीट भी शामिल हुई जो भाजपा के लिए चुनौति रही है। छिंदवाड़ा ऐसी सीट है जहां 1977 से कांग्रेस के कमलनाथ का कब्जा रहा। यहां से मुख्यमंत्री रह चुके कद्दावर राष्ट्रीय भाजपा नेता सुंदर लाल पटवा ही सिर्फ एक बार जीत पाए हैं, नहीं तो भाजपा के लिए यह सीट दूर की कौड़ी रही है। आज 2024 में जब यह सीट भाजपा ने अच्छे मार्जिन के साथ जीत ली है। यहां से बंटी विवेक साहू को भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगाकर जिता लिया है। कमलनाथ के सुपुत्र नकुल नाथ जो 2019 की मोदी की लहर में भी इस सीट पर बने रहे थे, भले ही मार्जिन महज 38 हजार था, वे भी इस चुनाव में उखड़ गए। और ऐसे वैसे नहीं उखड़े, अच्छे खासे 1 लाख 13 हजार के मार्जिन से उखड़े हैं।
बहरहाल मार्जिन जो हो, किंतु भाजपा का मकसद मार्जिन नहीं था। भाजपा ने पिछली बार 38 हजार से पिछड़े समान प्रत्याशी पर दांव लगाया। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, गोंडवाना राष्ट्रीय पार्टी से लेकर मुस्लिम निर्दलीय तक की रणनीति अपनाई। बड़े नेताओं का जमावड़ा लगाया। ऐन मौके पर आया एक कथित ऑडियो भी काउंटर किया। तब कहीं जाकर भाजपा ने छिंदवाड़ा अपने हाथ में लिया। भाजपा ने सिद्ध किया, वह अगर ठान ले तो ऐसी रणनीति बनाकर दिग्गजों के किलों को भी ध्वस्त करने में सक्षम है।
दरअसल छिंदवाड़ा में इतनी मेहनत क्यों करना चाहती थी भाजपा। पार्टी छिंदवाड़ा न भी जीतती, तो भी चल जाता, क्योंकि वह इतनी मेहनत से देश में दूसरी सीटें ज्यादा जीत जाती। किंतु पार्टी जानती है, 2018 में 2003 से चली आ रही सरकार का रथ सिर्फ कमलनाथ रोक सकते थे इनके अलावा कोई और नहीं। इसलिए नाथ के राजनीतिक माइट्रोकॉन्डिया (बिजलीघर) को खत्म करना जरूरी है।
अब एक जिज्ञासा है। कुछ महीनों पहले कमलनाथ का कांग्रेस से मोगभंग का समाचार प्रचलन में था। समाचार का आधार भी था। कमलनाथ ने न खंडन किया न माना था। स्वाभाविक सी बात है भाजपा कमलनाथ को पार्टी में लेने में हिचक रही थी। पंजाब सिख नरसंहार में नाम के चलते पार्टी में झिझक थी। किंतु नकुल को लेकर कोई झिझक नहीं। कमलनाथ 80 पार हैं, राजनीतिक सेवनिवृत्ति पर हैं। नकुल नौजवान हैं। सकारात्मक सियासत करते हैं। तो कह सकते हैं कि छिंदवाड़ा में बंटी साहू दूसरे केपी यादव भी बन जाएं तो अचरज न होगा।