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October 15, 2024
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Ratan Tata Passed Away: रतन नवल टाटा का निधन, 86 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

Ratan Tata Passed Away: टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन नवल टाटा ने बुधवार देर शाम मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली. 86 साल के रतन टाटा को उम्र संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उनका इलाज चल रहा था.

रतन टाटा के निधन की घोषणा करते हुए, टाटा संस के चेयरपर्सन एन चंद्रशेखरन ने एक बयान में कहा कि ये बहुत बड़ी क्षति है कि हम रतन नवल टाटा को अंतिम विदाई दे रहे हैं. उनके अतुल्य योगदान ने न केवल टाटा समूह को बल्कि हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को भी आकार दिया है… पूरे टाटा परिवार की ओर से, मैं उनके प्रियजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. उनकी विरासत हमें प्रेरित करती रहेगी क्योंकि हम उन सिद्धांतों को बनाए रखने का प्रयास करते हैं जिनका उन्होंने इतने जुनून से समर्थन किया.

स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा जैसे अन्य क्षेत्रों में किए कई काम

पद्म विभूषण से सम्मानित टाटा को देश के सबसे बड़े परोपकारी लोगों में से एक माना जाता था, जिनके परोपकार ने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पेयजल और कई अन्य क्षेत्रों में अपने काम के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया. रतन टाटा ने 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा संस के चेयरमैन का पद संभाला था.

रतन टाटा ने 2000 के दशक की शुरुआत में भारतीय व्यापारिक घरानों के वैश्वीकरण में अग्रणी भूमिका निभाई. सबसे पहले 2000 में टाटा टी की ओर से टेटली का अधिग्रहण किया गया. इसके बाद टाटा ने अधिग्रहण की होड़ में तीन दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी कंपनियों को खरीदा. इसके बाद टाटा स्टील की ओर से एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस का अधिग्रहण किया गया और ब्रिटिश ऑटोमोबाइल ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को टाटा मोटर्स की ओर से फोर्ड मोटर्स से खरीदा गया.

घरेलू मोर्चे पर, टाटा ने विभिन्न कंपनियों में अपने समूह की हिस्सेदारी को मजबूत किया. टाटा स्टील में, एक समय में बिड़ला परिवार की हिस्सेदारी टाटा स्टील से ज़्यादा थी. हालांकि, टाटा संस ने स्टील निर्माता में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 33.19 प्रतिशत कर ली. समूह की विभिन्न कंपनियों ने विस्तार और अधिग्रहण किया और समूह का कारोबार और बाजार पूंजीकरण पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है.

रतन टाटा के कार्यकाल में ही कार का निर्माण किया शुरू

टाटा मोटर्स, जिसे पहले कॉमर्शियल व्हीकल निर्माता के रूप में जाना जाता था, ने रतन टाटा के कार्यकाल के दौरान यात्री कारों का निर्माण शुरू किया. टाटा ने 2004 में स्टॉक एक्सचेंज में टीसीएस की लिस्टिंग के लिए पहल की, जो एक्सचेंजों पर दूसरी सबसे वैल्यूएबल कंपनी बन गई.

75 के हुए रतन टाटा तो आया मिस्त्री युग

जब रतन टाटा 75 वर्ष के हुए, तो उन्होंने 2012 में टाटा संस के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया. 2012 के बीच में, पल्लोनजी मिस्त्री समूह के साइरस मिस्त्री को टाटा समूह का प्रमुख बनाने के लिए एक चयन समिति की ओर से चुना गया और उसी वर्ष दिसंबर में उन्होंने कार्यभार संभाला. मिस्त्री 2012 से 2016 तक समूह के चेयरमैन रहे.

वे समूह के छठे अध्यक्ष थे और नौरोजी सकलतवाला के बाद दूसरे ऐसे व्यक्ति थे जिनका उपनाम टाटा नहीं था. निर्माण व्यवसाय से जुड़ा पल्लोनजी समूह कई दशकों तक टाटा समूह से जुड़ा रहा. हालांकि, चीजें बदतर होती चली गईं और विस्तार, विविधीकरण जैसे विभिन्न मुद्दों पर मिस्त्री के टाटा के साथ रिश्ते खराब हो गए.

24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस के बोर्ड ने मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया. रतन टाटा, जिन्हें मिस्त्री ने 29 दिसंबर 2012 को रिप्लेस किया था, को चार महीने के लिए अंतरिम चेयरमैन नियुक्त किया गया, जिसके दौरान एक सर्च कमिटी उनके स्थान पर नए चेयरमैन की तलाश करेगी.

मिस्त्री परिवार के पास टाटा संस में 18 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है, जबकि रतन टाटा की अध्यक्षता वाली टाटा ट्रस्ट के पास 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है. दोनों पक्षों (टाटा और मिस्त्री) ने आरोप-प्रत्यारोप का आदान-प्रदान किया. मिस्त्री को टीसीएस, टाटा स्टील, टाटा टेलीसर्विसेज और टाटा इंडस्ट्रीज समेत कई कंपनियों के चेयरमैन पद से भी हटा दिया गया.

मिस्त्री के जाने के बाद चंद्रशेखरन युग

साइरस मिस्त्री के जाने के बाद, एन चंद्रशेखरन, जिन्होंने टीसीएस के एमडी और सीईओ के रूप में अपनी पहचान बनाई थी, रतन टाटा के आशीर्वाद से टाटा संस के अगले चेयरमैन के रूप में चुने गए. कई अन्य उम्मीदवार भी थे, लेकिन चंद्रशेखरन को इसलिए चुना गया क्योंकि उन्होंने टाटा के साथ तीन दशक बिताए थे और भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी टीसीएस के विकास में अपनी योग्यता साबित की थी.

वे अक्टूबर 2016 में टाटा संस के बोर्ड में शामिल हुए और जनवरी 2017 में उन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, एयर इंडिया, टाटा केमिकल्स, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, इंडियन होटल कंपनी और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज समेत कई समूह परिचालन कंपनियों के बोर्ड की अध्यक्षता भी करते हैं.

रतन टाटा, टाटा ट्रस्ट्स (जिसमें सर रतन टाटा ट्रस्ट और एलाइड ट्रस्ट्स, तथा सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और एलाइड ट्रस्ट्स शामिल हैं) के अध्यक्ष थे. चूंकि ट्रस्ट्स के पास टाटा समूह की कंपनियों की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में लगभग 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है, इसलिए टाटा समूह के मामलों में टाटा का काफी प्रभाव था.

29 दिसंबर 2012 से टाटा को टाटा संस, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स के मानद चेयरमैन की मानद उपाधि प्रदान की गई. रिटायरमेंट के बाद रतन टाटा आरएनटी कैपिटल नाम के निवेश मंच से जुड़े, जिसने लेंसकार्ट, ब्लूस्टोन, ओला इलेक्ट्रिक, टॉर्क मोटर्स और अर्बन कंपनी जैसे कई स्टार्टअप में निवेश किया.

कैसे हुई रतन टाटा शुरुआत

28 दिसम्बर 1937 को जन्मे टाटा 1962 में टाटा समूह में शामिल हुए. विभिन्न कम्पनियों में सेवा देने के बाद, उन्हें 1971 में नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी का एक्टिंग डायरेक्टर नियुक्त किया गया. 1981 में, उन्हें समूह की अन्य होल्डिंग कंपनी टाटा इंडस्ट्रीज का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जहां वे इसे समूह रणनीति थिंक टैंक में बदलने और हाई टेक्नोलॉजी बिजनेसेज में नए उपक्रमों के प्रवर्तक (Promoters Of Undertakings) के रूप में कार्य करने के लिए जिम्मेदार थे.

रतन टाटा, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर, टाटा ग्लोबल बेवरेजेज, टाटा केमिकल्स, इंडियन होटल्स और टाटा टेलीसर्विसेज समेत प्रमुख टाटा कंपनियों के अध्यक्ष थे और उनके कार्यकाल के दौरान समूह का रेवेन्यू कई गुना बढ़ गया.

टाटा ने मित्सुबिशी कॉरपोरेशन और जेपी मॉर्गन चेस के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड में काम किया. वे टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष थे जो भारत के सबसे पुराने, गैर-सांप्रदायिक परोपकारी संगठनों में से एक है जो सामुदायिक विकास के कई क्षेत्रों में काम करता है. वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की मैनेजमेंट काउंसिल के अध्यक्ष भी थे और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के न्यासी बोर्ड में भी काम कर चुके हैं.

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