One Nation One Election: वन नेशन, वन इलेक्शन बिल लोकसभा में पेश हो चुका है. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक सदन में पेश किया. इस विधेयक के पेश होने के बाद कई पार्टियों ने इसका विरोध किया. इस प्रस्ताव को लेकर सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक (Constitution (One Hundred and Twenty-Ninth Amendment) Bill, 2024) पेश किया है. आइए जानते हैं कि इस विधेयक में अब तक क्या-क्या हुआ और लोकसभा में पेश होने के बाद इसमें आगे क्या-क्या होगा?
‘वन नेशन वन इलेकशन’ विधेयक को पास कराना सरकार के लिए टेंढ़ी खीर
सदन में इस बिल को पास कराना सरकार के लिए किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं. लोकसभा में एनडीए के पास 292 सीटें हैं. इस बिल को दो तिहाई बहुमत के साथ पास कराना है. ऐसे में इस बिल को पास कराने के लिए सरकार को कुछ विपक्षी पार्टियों का भी साथ चाहिए. लोकसभा में 543 सीटें हैं. इनमें से 362 सदस्यों की सहमती जरूरी है. एनडीए को 70 विपक्षी सांसदों का समर्थन चाहिए. वहीं राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए 164 सीटें चाहिए. राज्यसभा की 245 सीटों में से एनडीए के इस समय 112 सीटें हैं. यानी राज्यसभा में भी सरकार को 85 विपक्षी सांसदों की सहमति चाहिए.
सरकार ने इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजना का फैसला किया है. सरकार इस विधेयक पर आम सहमति बनाना चाहती है. इस पर विस्तृत चर्चा के लिए सरकार की ओर से लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला से जेपीसी के पास भेजने की सिफारिश की गई है. वन नेशन वन इलेक्शन को JPC के पास भेजने को लेकर वोटिंग की जा रही है.
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ विधेयक में अब तक क्या-क्या हुआ?
केंद्र सरकार इस बिल के पीछे यह तर्क देती आई है कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ देश की चुनावी प्रक्रिया में सुधारों की ओर एक बड़ा कदम है. इस सोच को आगे बढ़ाते हुए मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनामथ कोविंद की अध्यक्षता में सितंबर 2023 में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लेकर एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था.
वन नेशन वन इलेक्शन पर गठित रामनाथ कोविंद कमेटी ने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी को सौंपी थी. इस कमेटी में गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप और अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी सदस्य थे.
इस कमेटी ने 191 दिनों के शोध के बाद 18,626 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट की सिफारिशों को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सिंतबर 2024 में मंजूरी दी थी.
फिर 12 दिसंबर को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़े विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी.
रामनाथ कोविंद रिपोर्ट के अनुसार 47 राजनीतिक दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अपने विचार साझा किए थे, जिसमें से 32 दलों ने इसे लागू करने का समर्थन दिया था.
आज यानी 17 दिसंबर को वन नेशन वन विधेयक को मोदी सरकार ने लोकसभा में पेश कर दिया है. इस पर बहस चल रही है. कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया है.
वन नेशन वन इलेक्शन संविधान संशोधन विधेयक को मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया. इस बिल को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा प्रस्तुत किया गया. और इसमें सरकार का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का है. इस प्रस्ताव के तहत अगर किसी राज्य विधानसभा या लोकसभा को समय से पहले भंग किया जाता है, तो मध्यावधि चुनाव केवल उस विधानसभा या लोकसभा के लिए होंगे, ताकि बाकी का कार्यकाल पूरा किया जा सके.
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ बिल के प्रमुख प्रावधान
इस बिल के मुताबिक, यदि लोकसभा या किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले उसे भंग कर दिया जाता है, तो सिर्फ उसी चुनाव के लिए मध्यावधि चुनाव होंगे. इसके अलावा, संविधान में कुछ बदलाव किए जाएंगे, जैसे कि आर्टिकल 82(A) जो लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए समान चुनाव प्रक्रिया को लागू करेगा. इस बिल के तहत, लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे, लेकिन यह बदलाव 2034 तक लागू नहीं होगा.
वन नेशन वन इलेक्शन के तहत कैसे होगी चुनावी प्रक्रिया?
सरकार की योजना के अनुसार, “वन नेशन वन पोल” को दो चरणों में लागू किया जाएगा:
पहला चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे.
दूसरा चरण: जनरल चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी एक साथ कराए जाएंगे.
इसके लिए एक सामान्य निर्वाचन सूची (Common Electoral Roll) तैयार की जाएगी, जिससे सभी चुनावों में एक ही मतदाता सूची का उपयोग होगा. इसके अलावा, चुनाव आयोग और राज्य चुनाव अधिकारियों के साथ मिलकर मतदाता पहचान पत्र तैयार किए जाएंगे.
कोविंद पैनल की सिफारिशें
कोविंद पैनल ने इस मुद्दे पर अपनी सिफारिशें दी हैं, जिनके अनुसार “निर्धारित तिथि” (Appointed Date) को लागू किया जाएगा. इस तिथि के बाद, राज्य सरकारों का कार्यकाल कम कर दिया जाएगा, ताकि उनका कार्यकाल लोकसभा चुनाव के साथ मेल खा सके.
उदाहरण: यदि किसी राज्य का चुनाव 2025 में होता है, तो सरकार का कार्यकाल केवल चार साल का होगा, और 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद उसका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा.
वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने के लिए संविधान में क्या-क्या बदलवा किया जाएगा?
इस प्रस्ताव के लिए संविधान में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएंगे:
पहला संविधान संशोधन विधेयक: यह विधेयक आर्टिकल 82A को संविधान में जोड़ने का प्रस्ताव करता है, जिससे समान चुनावों की प्रक्रिया लागू की जा सके.
दूसरा संविधान संशोधन विधेयक: इसमें आर्टिकल 324A जोड़ा जाएगा, जिससे केंद्र सरकार को नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव भी लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के साथ कराने का अधिकार मिलेगा.
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए राज्यों से लेनी पड़ेगी मंजूरी
यह विधेयक संसद द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त करेगा. उसके बाद, एक कार्यान्वयन समूह गठित किया जाएगा जो संविधान में किए गए बदलावों को लागू करेगा. विशेष रूप से, राज्यों से यह अनुमति प्राप्त करना होगा कि वे स्थानीय निकाय चुनावों को समान समय पर कराएं.
इस बदलाव के तहत, सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग किया जाएगा, और इसके लिए एक सामान्य मतदाता पहचान पत्र (Voter ID) जारी किया जाएगा. इस बदलाव के लिए आधे राज्यों की मंजूरी जरूरी होगी.
सरकार के सामने होगी चुनौती
इस विधेयक को लेकर कई कानूनी चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं. विशेष रूप से, राज्यों की स्वायत्तता और फेडरलिज्म पर इसका प्रभाव पड़ सकता है. आलोचकों का कहना है कि यह राज्यों के अधिकारों को सीमित कर सकता है और उनकी स्थिर सरकार की अवधारणा को कमजोर कर सकता है.
कानून आयोग भी इस मुद्दे पर देगा अपनी रिपोर्ट?
कानूनी आयोग (Law Commission) भी इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही प्रस्तुत करने की योजना बना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय पर लगातार समर्थन व्यक्त किया है. आयोग की रिपोर्ट में यह संभावना जताई जा रही है कि 2029 से यह बदलाव लागू हो सकता है, और इसमें तीन स्तरों— लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे.
1983 में चुनाव आयोग ने की थी ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की सिफारिश
वन नेशन वन इलेक्शन का आइडिया तो भारत के पहले आम चुनाव से ही आया था. हालांकि, आगे चलकर यह प्रक्रिया टूटी और फिर 1983 में भारतीय चुनाव आयोग ने एक राष्ट्र एक चुनाव की सिफारिश की थी. उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे नकारा दिया था.
भारत में कब-कब हुए लोकसभा और राज्यसभा के एक साथ चुनाव?
वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक भले ही 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया है. इस बिल को लाने का उद्देश्य लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव को एकसाथ कराना है. लेकिन इससे पहले भी भारत में एकसाथ लोकसभा और राज्यसभा के विधानसभा चुनाव हुए थे. 1947 में आजादी के बाद देश में पहली बार 151-52 में आम चुनाव हुए थे. उस दौरान लोकसभा के साथ 22 राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव कराए गए थे. इस चुनावी प्रक्रिया में 6 महीनें का वक्त लगा था.
पहले लोकसभा चुनाव में 489 सीटों के लिए 17 करोड़ मतदाताओं ने सरकार चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. इस समय देश में मतदाताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक हो चुकी है. देश में पहले आम चुनाव के बाद 1957, 1962 और 1967 में एक साथ चुनाव हुए थे. यानी 1952 से लेकर 1967 तक भारत में लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे. हालांकि, कुछ राज्यों में अलग से चुनाव हुए थे. इसके साथ 1967 में कुछ विधानसभा समय से पहले ही भंग हो गई इसके बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. इसके बाद से ही देश में लोकसभा और राज्य के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे.