बलौदाबाजार। गणतंत्र दिवस के मौके पर जब देशभर में जश्न मनाया जा रहा है। बलौदाबाजार जिले से सटी एक बस्ती सांवरा की हालत प्रशासनिक उपेक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी की गवाही दे रही है।
कुकुरदी गांव के भाटा क्षेत्र में स्थित इस बस्ती में लगभग 500 लोग रहते हैं, जो 70-80 झुग्गियों में जीवन यापन कर रहे हैं। कभी इंदिरा कॉलोनी में बसे इन लोगों को 10-11 साल पहले यहां शिफ्ट कर दिया गया था। लेकिन तब से लेकर आज तक ये लोग नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।
बस्ती की सबसे बड़ी समस्या यह है कि, ना तो इन्हें बलौदाबाजार नगर पालिका का हिस्सा माना जाता है और ना ही निकटवर्ती गांव का। यहां तक की इनकी मतदाता सूची भी समय- समय पर बदली जाती रही है। पहले इन्होंने बलौदाबाजार में मतदान किया, लेकिन अब इन्हें कुकुरदी गांव के वार्ड क्रमांक 12 में शामिल कर दिया गया है। यहां शिक्षा की स्थिति भी काफी दयनीय है। इस बस्ती में केवल एकमात्र आंगनवाड़ी केंद्र है। जो कि, सिर्फ औपचारिकता के लिए खोला जाता है। आंगनवाड़ी सहायिका मात्र एक घंटे के लिए आती है और फिर चली जाती है। इस लापरवाही से यहां के बच्चों को ना तो उचित शिक्षा मिलती है, ना ही पोषण। इस गणतंत्र दिवस जैसे पर भी केवल सेव बूंदी बांटकर रस्म अदायगी की गई।
बस्ती वालों को नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ
यहां के लोगों को अब तक प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पाया है। क्योंकि, इनके पास स्वयं की जमीन नहीं है। यहां स्वास्थ्य और सफाई की हालत भी बेहद खराब है। बस्तीवासी छोटे- मोटे काम कर या भिक्षा मांग कर किसी तरह जीवन यापन करते हैं। जनप्रतिनिधि या अधिकारी यहां केवल चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं। बस्ती के लोग प्रशासन और सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी अन्य नागरिकों की तरह मूलभूत सुविधाएं दी जाएं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास, बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाएं।
शासन- प्रशासन और जनप्रतिनिधि नहीं दे रहे ध्यान
शासन- प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस बस्ती की ओर ध्यान देना चाहिए। ताकि, यहां के लोग भी सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें और देश की मुख्यधारा से जुड़ सकें। आज तक कि बस्ती में तिरंगा झंडा नहीं फहराया गया है। जनप्रतिनिधि यहां सिर्फ वोट मांगने के लिए ही पहुंचाते हैं, आजादी क्या होती है? राष्ट्रीय त्योहार क्या होता है? यहां के बच्चों को यह भी नहीं पता।